भारतीय सेना में सैनिकों की भारी कमी

1 लाख से ज्यादा पद खाली, ऑफिसर रैंक में 16.71% रिक्तियां

भारतीय सेना, जो देश की सुरक्षा और संप्रभुता की रीढ़ मानी जाती है, इस समय अपने इतिहास की सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक का सामना कर रही है। दैनिक भास्कर की एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, सेना में सैनिकों और अधिकारियों की भारी कमी देखी जा रही है। वर्तमान में भारतीय सेना में 1 लाख से अधिक सैनिकों के पद खाली हैं। इसके साथ ही, ऑफिसर रैंक में भी 16.71% पद रिक्त हैं, जो सेना की नेतृत्व क्षमता और ऑपरेशनल दक्षता के लिए गंभीर चिंता का विषय है। यह स्थिति न केवल सेना की ताकत को कमजोर कर रही है, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी खतरे की घंटी बजा रही है।
रिटायरमेंट और भर्ती का असंतुलन
रिपोर्ट के मुताबिक, भारतीय सेना में हर साल करीब 60,000 सैनिक सेवानिवृत्त हो रहे हैं। यह संख्या सामान्य रूप से रिटायरमेंट, स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति, और अन्य कारणों से होने वाली कमी को दर्शाती है। दूसरी ओर, सेना में नई भर्ती का आंकड़ा मात्र 40,000 प्रति वर्ष के आसपास है। इस तरह, हर साल लगभग 20,000 सैनिकों की कमी हो रही है, जो धीरे-धीरे सेना की कुल संख्या को कम कर रही है।
यह असंतुलन केवल सैनिकों तक सीमित नहीं है। ऑफिसर रैंक में 16.71% रिक्तियां इस बात का संकेत हैं कि सेना के कमांड स्ट्रक्चर में भी गंभीर कमी है। ऑफिसर रैंक में रिक्तियां होने से नेतृत्व, रणनीति निर्माण, और युद्धक परिस्थितियों में त्वरित निर्णय लेने की प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है। यह स्थिति विशेष रूप से तब और गंभीर हो जाती है, जब सेना को सीमा पर तनाव, आतंकवाद विरोधी अभियानों, या प्राकृतिक आपदाओं जैसे बहुआयामी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
सैनिकों की कमी के कारण
सेना में सैनिकों और अधिकारियों की कमी के पीछे कई कारण हो सकते हैं। सबसे पहले, आज के युवाओं के पास करियर के कई आकर्षक विकल्प उपलब्ध हैं। निजी क्षेत्र में उच्च वेतन, बेहतर जीवनशैली, और कार्य-जीवन संतुलन जैसे कारक युवाओं को कॉर्पोरेट नौकरियों की ओर आकर्षित कर रहे हैं। दूसरी ओर, सेना में कठिन प्रशिक्षण, लंबे समय तक परिवार से दूरी, और जोखिम भरे कार्यस्थलों की प्रकृति कुछ लोगों को सैन्य सेवा से दूर रखती है।
इसके अलावा, भर्ती प्रक्रिया में देरी और जटिलता भी एक बड़ा मुद्दा है। कई बार भर्ती रैलियों में हजारों युवा हिस्सा लेते हैं, लेकिन चयन प्रक्रिया में समय लगने और सीमित सीटों के कारण कई योग्य उम्मीदवारों को निराशा हाथ लगती है। साथ ही, सेना में शामिल होने के लिए आवश्यक शारीरिक और मानसिक मानकों को पूरा करना भी हर किसी के लिए संभव नहीं होता।
ऑफिसर रैंक की कमी का एक अन्य कारण नेशनल डिफेंस एकेडमी (एनडीए) और अन्य प्रशिक्षण संस्थानों में सीमित सीटें और कठिन चयन प्रक्रिया हो सकती है। इसके अलावा, कुछ ऑफिसर समय से पहले सेवानिवृत्ति ले लेते हैं, जिससे रिक्तियों की संख्या और बढ़ जाती है।
कमी का सेना और राष्ट्रीय सुरक्षा पर प्रभाव
सैनिकों और अधिकारियों की कमी का सीधा असर सेना की ऑपरेशनल क्षमता पर पड़ रहा है। भारतीय सेना को कई मोर्चों पर एक साथ काम करना पड़ता है—चाहे वह चीन और पाकिस्तान के साथ सीमा पर तनाव हो, जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद विरोधी अभियान हों, या पूर्वोत्तर राज्यों में आंतरिक सुरक्षा की जिम्मेदारी हो। इसके अलावा, प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़, भूकंप, और चक्रवात के दौरान सेना को राहत और बचाव कार्यों में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभानी पड़ती है।
इन सभी कार्यों के लिए पर्याप्त संख्या में प्रशिक्षित सैनिकों और अधिकारियों की आवश्यकता होती है। लेकिन मौजूदा कमी के कारण सैनिकों पर अतिरिक्त दबाव पड़ रहा है, जिससे उनकी कार्यक्षमता और मनोबल पर असर पड़ सकता है। ऑफिसर रैंक की रिक्तियां नेतृत्व के स्तर पर कमजोरी पैदा कर सकती हैं, जिसका असर युद्धक रणनीतियों और सैन्य अभियानों की सफलता पर पड़ सकता है।
राष्ट्रीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से, यह स्थिति चिंताजनक है। एक मजबूत और पूरी तरह से सुसज्जित सेना के बिना देश की सुरक्षा को खतरा हो सकता है। खासकर तब, जब भारत जैसे देश को अपने पड़ोसी देशों के साथ लगातार भू-राजनीतिक तनाव का सामना करना पड़ता है।
सरकार और सेना के प्रयास
इस गंभीर समस्या से निपटने के लिए सरकार और सेना ने कई कदम उठाए हैं। भर्ती प्रक्रिया को तेज करने और इसे और अधिक पारदर्शी बनाने के लिए डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग किया जा रहा है। ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन, कंप्यूटर आधारित परीक्षाएं, और भर्ती रैलियों के बेहतर आयोजन से अधिक युवाओं को सेना में शामिल होने का मौका मिल रहा है।
इसके अलावा, सेना ने युवाओं को आकर्षित करने के लिए जागरूकता अभियान भी शुरू किए हैं। स्कूलों और कॉलेजों में करियर काउंसलिंग सत्र आयोजित किए जा रहे हैं, जिनमें सैन्य सेवा के फायदों और सम्मान के बारे में बताया जा रहा है। सरकार ने अग्निपथ योजना जैसे नए प्रयोग भी शुरू किए हैं, जिसके तहत युवाओं को चार साल की सैन्य सेवा का अवसर दिया जाता है। हालांकि, इस योजना को लेकर कुछ विवाद भी रहे हैं, और इसका दीर्घकालिक प्रभाव अभी देखा जाना बाकी है।
ऑफिसर रैंक की कमी को पूरा करने के लिए एनडीए, इंडियन मिलिट्री एकेडमी (आईएमए), और ऑफिसर्स ट्रेनिंग एकेडमी (ओटीए) जैसे संस्थानों में प्रशिक्षण क्षमता बढ़ाने पर विचार किया जा रहा है। साथ ही, सेवानिवृत्त होने वाले ऑफिसरों को प्रोत्साहित करने के लिए बेहतर वेतन और सुविधाओं पर भी ध्यान दिया जा रहा है।
भविष्य के लिए सुझाव
सेना में सैनिकों और अधिकारियों की कमी को दूर करने के लिए दीर्घकालिक और समग्र दृष्टिकोण की आवश्यकता है। कुछ संभावित उपाय निम्नलिखित हो सकते हैं:
भर्ती प्रक्रिया में सुधार: भर्ती प्रक्रिया को और सरल, तेज, और पारदर्शी बनाने की जरूरत है। तकनीक का उपयोग बढ़ाकर उम्मीदवारों के लिए प्रक्रिया को सुगम किया जा सकता है।
युवाओं को प्रोत्साहन: सेना में शामिल होने के लिए बेहतर वेतन, सुविधाएं, और करियर प्रगति के अवसर प्रदान किए जाने चाहिए। साथ ही, सैन्य सेवा को गौरवपूर्ण और आकर्षक करियर विकल्प के रूप में प्रचारित करने की जरूरत है।
शिक्षा और जागरूकता: स्कूल और कॉलेज स्तर पर सैन्य सेवा के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए विशेष अभियान चलाए जा सकते हैं। राष्ट्रीय कैडेट कोर (एनसीसी) जैसे कार्यक्रमों को और मजबूत किया जा सकता है।
महिलाओं की भागीदारी: सेना में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने से भी रिक्तियों को भरने में मदद मिल सकती है। हाल के वर्षों में महिलाओं को स्थायी कमीशन देने जैसे कदम सकारात्मक हैं, और इनका विस्तार किया जाना चाहिए।
अग्निपथ योजना का मूल्यांकन: अग्निपथ योजना की सफलता और कमियों का आकलन करके इसे और प्रभावी बनाया जा सकता है, ताकि यह युवाओं के लिए आकर्षक हो।
निष्कर्ष
भारतीय सेना में सैनिकों और अधिकारियों की कमी एक गंभीर मुद्दा है, जिसे तत्काल ध्यान देने की आवश्यकता है। 1 लाख से अधिक सैनिकों के पद खाली होना और ऑफिसर रैंक में 16.71% रिक्तियां होना न केवल सेना की कार्यक्षमता को प्रभावित कर रहा है, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी जोखिम पैदा कर रहा है। सरकार, सेना, और समाज को मिलकर इस चुनौती का सामना करना होगा। युवाओं को सेना में शामिल होने के लिए प्रेरित करना, भर्ती प्रक्रिया में सुधार करना, और सैन्य सेवा को सम्मानजनक करियर विकल्प के रूप में स्थापित करना इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम हो सकते हैं।

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