
कुरीतियो के जाल में ग्रामीण
मध्यप्रदेश में एक ऐसा गांव है जहां आज भी स्त्री ‘वैसे’ धंधे में परिवार के पुरुषों द्वारा धकेली जा रही हैं। वही घर के पुरुष नशे में धुत्त ग्राहकों को ढूंढते नजर आते है। गांव में अव्यवस्था का माहौल है। स्थानीय प्रशासन की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़े होते हैं। यहां की महिलाएं बेहतर जीवन के लिए संघर्ष कर रही हैं।
हवा में शराब की गंध, मुंह में गुटखा लिए यहां वहां भटकते युवा, सड़कों के किनारे सज धज कर खड़ी जवान लड़कियां, लड़कियों के बगल में पिता, भाई और दादा कस्टमर का इंतजार कर रहे हैं। आने जाने वाले लोगों को हल्का सा इशारा करके रेट बताते हैं और अंदर आने का न्यौता दिया जाता है। ये किसी फिल्म का सीन लग रहा होगा पर यह एक गांव की असलीयत है। नजारा है एमपी के ऐसे गांव का जो विकास के दौर में कहीं पीछे बहुत पीछे रह गया है।
यह गांव विदिशा और रायसेन जिले के पास में आता है। इसके साथ ही सांची स्तूप से कुछ 15 से 20 मिनट की दूरी पर है। वहीं विदिशा से यहां पहुंचने में 30 से 40 मिनट का वक्त लगता है। भोपाल से यह इलाका लगभग 55 किमी है। हम बात कर रहे हैं सूखा करार गांव की। गांव की आबादी डेढ़ हजार है। बेड़िया जाति के लोग यहां अधिक संख्या में हैं।
इस गांव में कमाने वाली स्त्री हैं। इसके साथ ही पुरुष यहां नशे में धुत्त यहां वहां पड़े नजर आते हैं। और तो और, वे इस नशे में इस तरह धंस चुके हैं कि उन्होंने अपने घर की इज्जत को सड़कों पर बिठा दिया है प्रोडक्ट बनाकर। जी हां! यह सुनने में जितना गन्दा लग रहा है उतना ही सच भी है।वही परिवार के पुरुष घर की बहन बेटियों के लिए ग्राहकों इंतजाम करते हैं। वे बकायदा घरों के बाहर कुर्सी लगाए नजर आते हैं। गांव में आने हर आदमी को उसी नजर से देखा जाता है। यहां किराना दुकान वाला नाम की दुकान चला रहा है उसका असली काम तो कुछ और ही है।
एक युवक मुकेश ने अपना अनुभव बताया। मैं सांची घूमने गया, तब मुझे वहीं सूखा करार गांव के बारे में पता चला। जिज्ञासा से मैंने इस गांव में जाने का सोचा। थोड़ी देर बाइक चलाने के बाद नहर के बगल से एक टूटे फूटे रास्ते से में यहां पहुंचा। गांव में एक ही रास्ता आने और जाने का है। इस गांव में एंट्री लेते ही आपको कुछ लोग घेरकर खड़े हो जाएंगे फिर वे गांव में अंदर जाने की भी कीमत लेते हैं। मैंने वहां 150 रुपए देकर एंट्री ली। इसके बाद गांव अंदर जाते ही गंदगी के साथ शराब की तेज महक आई। फिर मैं एक किराना दुकान पर रुका वहां पानी की बोतल का पूछा तो दुकान वाला कहना लगा ‘देखना है’ मैंने पूछा ‘क्या ?’ तो वह मुझे घर के अंदर ले गया। वहां कुछ औरते बैठी हुईं थी। उसने शराब की महक वाले मुंह के साथ रेट बताना शुरू कर दिया और बोला कि 300, 500 और 600… बता दो अच्छा लगे तो! मैं तब तक सब समझ गया है और बिना देरी के वहां से बाहर निकल आया।
दुकान वाले से बातचीत करने पर उसने बताया कि यह काम यहां वर्षों से बिना दिक्कत के चला आ रहा है। सरपंच की भूमिका पर भी सवाल खड़े हुए हैं। गांव ने कुरीति को इस तरह अपना लिया है कि ऐसा लग रहा है कि सरकारी प्रयास भी इन लोगों को बाहर नहीं निकाल पा रहा है।
इस काम को लेकर जब एक बालिकाओ से बात की गई तो उन्होंने बताया कि परिवार को पालने के लिए ऐसा करना पड़ता है। जमीन नहीं है, घर में कोई कमाने वाला भी नहीं है। पेट पालने के लिए यही एक काम यही रह जाता है। यहां हम प्राइवेट नौकरी से ज्यादा कमाई कर लेती हैं। मर्जी के बारे में पूछा गया तो उन्होंने बताया कि घर में यदि चार महिलाएं हैं तो एक को यह काम करना ही पड़ेगा ताकि सब दो वक्त की रोटी खा सकें। अब देखना होगा कि इनकी स्थिति के सुधार के लिए क्या कुछ प्रयास होते हैं।