
23 जुलाई 2025: भारत की पावन धरती पर स्थित 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक, रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग न केवल शिवभक्तों के लिए अत्यंत पवित्र स्थल है, बल्कि यह भगवान श्रीराम के चरणों से भी पावन हुआ है। तमिलनाडु के रामनाथपुरम ज़िले में स्थित यह स्थल एक ऐसा स्थान है जहाँ भक्ति, इतिहास, आस्था और विज्ञान—सभी एक साथ जुड़ते हैं।
पौराणिक कथा: जब श्रीराम ने शिवलिंग की स्थापना की
तमिलनाडु के रमणीय समुद्र तट पर स्थित रामेश्वरम मंदिर केवल स्थापत्य कला का अद्भुत उदाहरण नहीं है, बल्कि यह एक ऐसी भूमि है जहाँ श्रद्धा, भक्ति और इतिहास एक-दूसरे से जुड़ते हैं। यह वही स्थान है जहाँ भगवान श्रीराम ने लंका विजय से पूर्व भगवान शिव की आराधना की थी।
कहा जाता है कि जब अयोध्या के राजा श्रीराम लंकापति रावण से युद्ध करने जा रहे थे, तब उन्होंने विजय की कामना से समुद्र तट पर रेत का शिवलिंग बनाकर भगवान शिव की साधना की। उनकी गहन भक्ति से प्रसन्न होकर भगवान शिव ज्योति रूप में प्रकट हुए और उन्हें आशीर्वाद दिया। यह स्थान तभी से अत्यंत पवित्र माना जाता है।
लंका विजय के पश्चात जब भगवान राम अयोध्या लौट रहे थे, तब ऋषि-मुनियों ने उन्हें ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्त होने के लिए भगवान शिव की विधिपूर्वक पूजा करने का परामर्श दिया। इसके लिए श्रीराम ने हनुमान जी को कैलाश पर्वत भेजा, ताकि वे वहां से एक दिव्य शिवलिंग लेकर आएं।
हालांकि, हनुमान जी को शिवलिंग लाने में विलंब हो गया। समय निकलता देख माता सीता ने अपने कर-कमलों से मृत्तिका (रेत) का शिवलिंग बनाया और भगवान राम ने उसी का पूजन कर भगवान शिव का आवाहन किया। आज उसी पवित्र शिवलिंग को “रामनाथेश्वर” या “रामेश्वरम” के नाम से पूजा जाता है।
बाद में जब हनुमान जी कैलाश से लाया गया शिवलिंग लेकर लौटे, तो उन्होंने थोड़ा खिन्न होकर भगवान राम से उस शिवलिंग को स्थापित करने की अनुमति मांगी। श्रीराम ने प्रेमपूर्वक उस शिवलिंग को भी वहीं स्थापित करवाया। वह शिवलिंग “हनुमदीश्वर” के नाम से प्रसिद्ध हुआ, और यह आज भी श्रद्धालुओं के दर्शन हेतु विराजमान है।
यह कथा हमें बताती है कि भक्ति का रूप कोई भी हो—निर्मल मन, दृढ़ संकल्प और आस्था से की गई साधना ही सबसे महत्वपूर्ण होती है। रामेश्वरम, आज भी हर भक्त के लिए वही शक्ति और शांति का केंद्र बना हुआ है l
रामनाथस्वामी मंदिर की भव्यता
रामनाथस्वामी मंदिर, भारत के सबसे भव्य और प्राचीन मंदिरों में से एक है। यह मंदिर द्रविड़ शैली की वास्तुकला का अद्भुत उदाहरण है। इसकी कुछ विशेषताएँ:
- 1000 मीटर लंबा गलियारा (Corridor) – यह दुनिया के सबसे लंबे मंदिर गलियारों में से एक है।
- 22 स्नान कुंड (Tirthas) – प्रत्येक कुंड का पवित्र महत्व है और कहा जाता है कि इन सभी में स्नान करने से जीवन के पापों से मुक्ति मिलती है।
- प्राचीन ग्रेनाइट नक्काशी – दीवारों और खंभों पर बनी सुंदर कलाकृतियाँ इस मंदिर को और भी दिव्य बनाती हैं।
रामेश्वरम कैसे पहुँचें
तमिलनाडु राज्य में स्थित रामेश्वरम, भारत के अंतिम दक्षिणी छोरों में से एक है, जो राम सेतु (एडम्स ब्रिज) के पास है।
हवाई मार्ग:
- नजदीकी हवाई अड्डा – मदुरै (170 किमी)
रेल मार्ग:
- रामेश्वरम रेलवे स्टेशन प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है।
सड़क मार्ग:
- मदुरै, कन्याकुमारी, तंजावुर और त्रिची से बसें और टैक्सी सेवाएँ उपलब्ध हैं।
अन्य दर्शनीय स्थल
- धनुषकोडी – समुद्र और इतिहास का संगम, जहाँ से राम सेतु शुरू होता है।
- पंचमुखी हनुमान मंदिर – जहाँ हनुमानजी की दुर्लभ पंचमुखी प्रतिमा स्थित है।
- कोथंडारामस्वामी मंदिर – जहाँ विभीषण ने श्रीराम का साथ चुना।
- राम तीर्थम्, सीता कुंड – पौराणिक जल स्रोत जो श्रीराम-सीता से जुड़े हैं।
पूजन विधि और परंपराएं:
- मंदिर में प्रवेश से पहले 22 कुंडों में स्नान करने की परंपरा है।
- इसके बाद मुख्य गर्भगृह में रामलिंगम की पूजा होती है।
- श्रद्धालु यहाँ रुद्राभिषेक, पार्थिव पूजन, जलाभिषेक जैसे विशेष अनुष्ठानों में भाग लेते हैं।
यात्रा हेतु सुझाव एवं जानकारी:
- उत्तम समय: अक्टूबर से मार्च
- भोजन: स्थानीय शाकाहारी भोजन मंदिर के आसपास उपलब्ध है।
- रहने की व्यवस्था: धर्मशालाएँ, होटल व लॉज विभिन्न बजट में उपलब्ध हैं।
आध्यात्मिक अनुभव
रामेश्वरम केवल एक तीर्थ नहीं, यह एक आंतरिक यात्रा है – जहाँ मन में शांति उतरती है, पापों का बोझ हल्का होता है और आत्मा शिव में लीन होती है। यहाँ आकर ऐसा लगता है मानो श्रीराम की विनम्रता और शिव की करुणा एक साथ मिल रही हों।
रामेश्वरम ज्योतिर्लिंग एक ऐसा स्थान है जहाँ राम ने शिव की आराधना की, और जहाँ भक्ति, शक्ति और श्रद्धा का संगम होता है। हर शिवभक्त को अपने जीवन में एक बार यहाँ अवश्य आना चाहिए, क्योंकि यह यात्रा केवल स्थान की नहीं, आत्मा की होती है।
“रामेश्वरम जाएँ, जीवन को शिवमय बनाएँ!”
हर हर महादेव