
मणिकर्णिका घाट पर मसान होली
काशीनगरी यानी बनारस…. जहां एक तरफ रंग-गुलाल और अबीर से जमकर होली खेली जाती है तो वहीं यही एक ऐसा शहर है जहां चिताओं की राख से होली खेली जाती है… काशी की इस होली को मसाने की होली या फिर मसान होली कहा जाता है… बनारस में बहती गंगा के हरिश्चंद्र घाट में महा श्मशान नाथ की आरती के बाद ‘मसाने की होली’ की शुरु हो जाती है… मसान में होली के दिन साधु-संत और शिव भक्त की टोली बाबा विश्वनाथ की पूजा के बाद चिता की राख से होली खेलते हैं… इस दौरान मणिकर्णिका घाट पर ‘हर-हर महादेव’ के जयकारे लगते हैं और जयकारों से गूंज उठता है गंगा घाट… पौराणिक मान्यता है कि चिता की भस्म से होली खेलने पर शिवजी का अद्भुत आशीर्वाद प्राप्त होता है….कहा जाता है मसान होली के दिन काशी के हरिश्चंद्र घाट और मर्णिकर्णिका घाट पर भगवान शिव अपने गणों के साथ विचित्र होली खेलने पहुंचते हैं…..इस साल बनारस में मसान होली 11 मार्च यानि कल खेली जाएगी… मसाने की होली रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन मनाई जाती है औऱ बनारस में रंगभरी एकादशी के दिन से होली का हुड़दंग शुरू हो जाता है… रंगभरी एकादशी से लेकर पूरे 6 दिनों तक यहां रंगभरी होली होती है…… रंगभरी एकादशी के दिन भगवान शिव मां गौरी का को काशी लेकर आए थे.. इसके बाद उन्होंने अपने गणों से साथ गुलाल-अबीर के साथ होली खेली थी… लेकिन भगवान शिव भूत-प्रेतों, यक्ष, गंधर्वों के साथ होली नहीं खेल पाए थे.. तब महादेव ने रंगभरी एकादशी के दूसरे दिन भूत-पिशाचों के साथ होली खेली थी… तब से ही काशी में ‘मसाने की होली’ मनाने की परंपरा शुरू हुई… काशी में देवों के देव महादेव भगवान शिव स्वयं होली खेलने आते हैं… रंगभरी एकादशी के दिन बाबा विश्वनाथ की नगरी में बम भोले के जयकारों के साथ रंग अबीर उड़ाकर पोली का पर्व मनाया जाता है…इसे देखने के लिए के लिए काशी में भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है…विदेशी भी पहुंचते हैं… रंगों के पर्व होली का भरपूर आनंद उन्माद और उल्लास देखते ही बनता है…