उप्र में पंचायत चुनाव की तैयारियां तेज,क्षेत्रवार और जातिवार रहेगा बड़ा मुद्दा

यूपी में विधानसभा चुनाव भले ही 2027 में हो लेकिन चुनाव की तैयारी और रणनीति में सभी दल पूरी तरह से जुट गए हैं…..विधान सभा चुनाव से पहले यूपी में पंचायत के चुनाव आने वाले हैं….जिनके लिए लगभग आठ माह का समय बचा है….पंचायत के चुनाव राजनीति की पहली सीढ़ी की तरह होते हैं….एक सीढ़ी के बाद ही अगली सीढ़ियां चढ़ने को मिलेंगीं…..तो पंचायत के चुनाव …जिसके चलते सियासी पारा गरमा रहा है इधर एक औऱ वाकया हुआ कि बीजेपी के दो सहयोगी दलों ने अकेले पंचायत चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है…भाजपा की सहयोगी निषाद पार्टी के प्रमुख संजय निषाद और अपना दल की अनुप्रिया पटेल ने साफ कहा है कि उनकी पार्टी पंचायत चुनाव में अकेले चुनाव लड़ेगी… ऐसा देखा जा रहा है कि यूपी के छोटे दल पंचायत चुनाव के चलते 2027 के लिए बड़ा ख्वाब देख रहे हैं, लेकिन क्या अकेले चुनाव लड़ने से ख्वाहिश पूरी होगी ? अगर इस पंचायत चुनाव को 2027 का SEMIFINAL भी कहें तो कोई दो राय नहीं होगी….यहीं से सभी दलों को समझ आयेगा कि आखिर कौन कितने पानी में है…आपको बता दें कि यूपी की दो तिहाई विधानसभा सीटें ग्रामीण इलाके से आती हैं, जहां अभी पंचायत चुनाव होते हैं… सियासी दल पंचायत चुनाव के परिणाम से ही अपनी सियासी ताकत का आकलन करते हैं… इसीलिए बीजेपी के साथ रहते हुए भी ये दल पंचायत चुनाव में अकेले दम पर लड़ना चाहते हैं…औऱ 2027 तक अपनी सियासी पावर को बढ़ाना चाहते हैं….अब समझिये कि ये चुनाव इसलिए भी खास है क्योंकि यूपी में औसत तौर पर चार से छह जिला पंचायत सदस्यों को मिलाकर विधानसभा का एक क्षेत्र बनता है…और अनुप्रिया पटेल इस खेल को अच्छी तरह से समझती हैं यही वजह है कि अपना दल का फोकस पंचायत चुनाव में जिला पंचायत की सीटों पर है…. यूपी के सियासी रणनीतिकार मानते हैं कि जिला पंचायत के सदस्यों को मिलने वाले वोट के आधार पर राजनीतिक दलों को इस बात का एहसास होता है कि वो कितने पानी में हैं….यूपी में अपना दल का प्रभाव मुख्य रूप से कुर्मी समाज के बीच है….इसी तरह निषाद पार्टी का आधार निषाद समाज के बीच है… इसीलिए दोनों ही पार्टियों का प्रभाव अपने-अपने समाज पर है, जो मूलरूप से ग्रामीण इलाके में रहते हैं…और पंचायत चुनाव के आधार पर ही वोटों के समीकरण को टटोला जाता है… सियासी दल ये भी समझते हैं और आकलन करते हैं कि क्षेत्रवार और जातिवार आधार पर आगे कैसी और क्या रणनीति बनानी है…. एक वजह ये भी है कि यूपी पंचायत चुनाव के आधार पर ये दल 2027 के विधानसभा चुनाव की सियासी जमीन नापना चाहते हैं इसलिए गठबंधन की परवाह किए बिना ही अनुप्रिया पटेल और संजय निषाद ने अपनी सियासी EXCERCISE शुरू कर दी है,वो बात अलग है कि अगर थोड़ी भी भूल-चूक हुई तो अकेले चुनाव लड़ने से खेल बिगड़ भी सकता है.
राजनीतिक जानकारों की मानें तो बीजेपी के दोनों सहयोगी दल भले ही अपनी पार्टी को मजबूत करने के उद्देश्य से अकेले चुनाव लड़ने जा रहे हैं, लेकिन इससे कहीं ना कहीं सियासी नुकसान के भी CHANCES है… चलिए अब ये समझ लेते हैं कि आखिर इन पंचायत चुनाव में अकेले लड़ने से क्या नुकसान हो सकते हैं…
आपको बता दें कि अलग-अलग चुनाव लड़ने से यूपी की जनता में गलत मैसेज चला जाएगा…
और विपक्षी पार्टी सपा इसे मुद्दा भी बना सकती है और गांव-गांव तक भुना सकती है… इतना ही नहीं, ये भी कहा जा रहा है कि ये दल इसलिए भी अलग होकर चुनाव लड़ रहे हैं, जिससे अगर पंचायत चुनाव में इनकी सीटें ठीक-ठाक आ जाती हैं या अनुमान से ज्यादा आ जाती हैं तो ये विधानसभा चुनाव में बीजेपी पर ज्यादा सीट का दबाव बना सकें, लेकिन एनडीए के घटक दलों के अकेले-अकेले चुनाव लड़ने से वोट बिखरने का भी खतरा है… लेकिन इन सब के बीच एकबात तय है और वो ये कि बीजेपी का संगठन पूरी कोशीश करेगा इस SITUATION को कैसे संभाला जाए……बीजेपी की नीति वहां से शुरू होती है जहां लोगों की राजनीति खतम होती है…. न तो वो अपने सहयोगी दलों को टूटने देगा….न अकेला छोड़ेगा औऱ न ही उन्हें पनपने का की मौका देगा….तो पंचायत चुनाव में भले ही 8 माह का वक्त है औऱ अभी सियासत कई करवट बदलेगी फिर तस्वीर कैसी बनेगी पंचायत चुनाव की इसी पर रहेगी हमारी नजर….

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