
कांग्रेस के रणनीतिकार सोशल मीडिया में पोस्टर लगाने और हटाने में ही उलझी रही …इधर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जाति जनगणना को मंजूरी देकर एक बड़ा सियासी दांव खेल दिया है. औऱ ये मानकर चलिए कि राहुल गांधी समेत पूरी कांग्रेस को जोर का झटका धीरे से दे दिया है….अब आप सोच रहे होंगे इससे होगा क्या…इससे होगा ये बैठेबिठाए कांग्रेस और खासकर राहुल गांधी के हाथ से उनका सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा फिसल गया…औऱ बीजेपी की झोली में जा गिरा…. लंबे समय से राहुल गांधी और विपक्ष जातिगत जनगणना की मांग को लेकर बीजेपी पर लगातार हमलावर थे, ….कई राज्यों के चुनावों में इशे खूब भुनाने की कोशिश बी की….लेकिन अब एनडीए सरकार के इस कदम से सियासी गलियारों में बहस छिड़ गई है….राजनीतिक समीकरण तेजी से बदलने लगे हैं….अब सबसे विकट हालात वहां बनेंगे जहां हाल ही में चुनाव होना है…जैसे बिहार … चुनाव में यहां कैसे हालात बदल सकते हैं. इसके फायदे क्या होंगे ……..और नुकसान क्या होंगे….ये समझने वाली बात होगी….पहले समझते हैं जातिगत जनगणना है क्या….और आकिर ये इतनी जरूरी क्यों हो गई कि सरकार को फैसला लेना पड़ा…. विपक्ष यानि इंडा गठबंधन….हालांकि वो भी नाम का ही बचा है….इनका कहना है कि जाति जनगणना होगी तो समाज में किस जाति के कितने लोग हैं, उसके बारे में डिटेल्स में पता चल सकेगा. इससे आरक्षण का लाभ उन्हें सही तरीके से दिया जा सकेगा. विपक्ष हमेशा से कहता रहा है कि पिछड़े वर्ग की जनसंख्या ज्यादा है लेकिन उनकी भागीदारी उतनी नहीं है. राहुल गांधी हर सभा में कहते रहे हैं कि उनकी सरकार बनी तो जाति जनगणना कराएंगे और आरक्षण की 50 फीसदी की सीमा को पार कर जाएंगे. अब पीएम मोदी ने बड़ा दांव चलते हुए विपक्ष से उनका मुद्दा छीन लिया है….अब वो मैदान में किस मुद्दे पर जायेंगे…हालांकि ये उनके सोचने का विषय है….देखिये हिन्दुस्तान में कहावत है…कोस कोस में बदले पानी…चार कोस में बानी …और ऐसे पानी और बानी वाले भी इसी देश में मिलते हैं…तो इतनी जातिया हैं…जातियों के अंदर भी प्रजातियां हैं…औऱ प्रजातियां हैं…ये एक बहुत ही क्रिटिकल मुद्दा है….लंबा लेखाजोखा है…और उसी में राहुल गांधी मुद्दा ढूंढ़ रहे थे….उलझे पड़े थे…औऱ अब मुद्दा ही चली गया….दरअसल हम सबको लगता है जाति जनगणना होने से किस जाति के कितने लोग हैं, उसके बारे में पता चल सकेगा….अगर पिछड़ी जाति के लोग ज्यादा हैं तो उन्हें ज्यादा आरक्षण देने का दबाव बनेगा….अभी कई ऐसी जातियां हैं, जिनको आरक्षण का लाभ नहीं मिलता है, उन्हें भी फायदा होगा.
इसके पहले अब तक सामाजिक आर्थिक जनगणना होती थी, लेकिन पहली बार ऐसा होगा कि जातिगत जनगणना होगी….इससे देश की राजनीति में तो बड़ा बदलाव आएगा ही खासकर हिन्दी पट्टी के जो क्षेत्र हैं उनमें जातियों को लेकर लोग बेहद संवेदनशील हैं……अब जैसे बिहार की बात करें जहां इसी साल चुनाव हैं…और बिहार में जातिवाद पर तो युद्ध हो जाते हैं….जाति जाति खेलकर मंत्री बन जाते हैं…यहां इस मुद्दे पर नेता खूब सियासत करते हैं…….बिहार, में जातीय राजनीति की अच्छी खासी पकड़ है, वहां जाति पर ही फैसला निर्णायक साबित हो सकता है….अब माना जा रहा है ये रणनीति एनडीए ने इसलिए बनाई कि एनडीए को पिछड़े वर्गों में बढ़त मिल सके…… खासकर उन वोटर्स के वोट मिले जो अब तक कांग्रेस के पाले में थे या फिर क्षेत्रीय दलों के साथ जुड़े थे… अब सबसे बड़ी मुसीबत उनके लिए हो गई है जो जाति जाति करके वोट बटोरते थे….यानि आरजेडी और कांग्रेस को अपनी रणनीति अब बदलनी होगी, क्योंकि बीजेपी ने उनके मुख्य एजेंडे को खुद ही आगे बढ़ा दिया है….यही नहीं नीतीश कुमार की JDU भी जाति जनगणना की वकालत करती आई है… ऐसे में बीजेपी और JDU का तालमेल और मजबूत हो गया है…..लेकिन बीजेपी अपने इस फैसले को व्यक्तिगत रूप से भी भुना सकती है….बिहार में OBC और EBC वोटरों को लुभाने के लिए बीजेपी इशी लाइन पर चलेगी….क्योंकि बिहार में राज्य की 65 फीसदी आबादी ओबीसी और अन्य पिछड़ा वर्ग की है….तो एक बड़ा हिस्सा अब इशके अंतर्गत आ जायेगा…ऐसे में अब राहुल गांधी का ‘जाति बताओ’ अभियान तो कोई और ले गया….इसके जरिए सामाजिकता में बराबरी की न्याय की राजनीति को धार देने की कोशिश की जायेगी…..लेकिन मोदी सरकार के आए अचानक इस फैसले से उनकी ये रणनीति कमजोर हो जाएगी… उन्हें नए नैरेटिव और मुद्दों की तलाश करनी होगी. इसके बाद अन्य राज्यों में भी जाति जनगणना की मांग जोर पकड़ेगी. लेकिन इतना जरूर है कि आरक्षण की समीक्षा और विस्तार पर नई बहस शुरू होगी….और सबसे बड़ा मुद्दा सामान्य वर्ग को एनडीए कैसे संतुष्ट करेगी…इसके लिए एनडीए को होम वर्क करना पड़ेगा…