महाशिवरात्रि के अवसर पर काशी में नागा साधुओं ने गदा और तलवार लेकर एक भव्य प्रक्रिया शुरू की

काशी में नागा साधुओं की प्रक्रिया के दौरान लोगों ने उनके साथ मिलकर ‘हर-हर महादेव’ के लगाए नारे

वाराणसी। काशी में महाशिवरात्रि पर भक्तों के साथ ही अखाड़ों के साधु-संतों का सैलाब भी उमड़ पड़ा। बुधवार की सुबह से ही गोदौलिया क्षेत्र हर-हर महादेव के जयकारे से गूंजता रहा है!

बाबा विश्वनाथ की नगरी में कण- कण शंकर का भाव साकार भी हुआ। गंगा घाट, गलियां और सड़कों पर शिव के गणों का भी हुआ जयघोष। महाशिवरात्रि पर नागा साधुओं ने अपने आराध्य को त्रिवेणी का पुण्य अर्पित भी किया। शस्त्र और शास्त्र से महादेव के चरणों में श्रद्धा का भाव भी अर्पित किया।

ब्रह्म मुहूर्त में अखाड़ों में पेशवाई की तैयारी भी शुरू हो गई। हनुमान घाट से गौदौलिया तक सड़क के दोनों तरफ बैरिकेडिंग भी की गई थी।

हर- हर महादेव का जयकारा लगाते हुए नागा साधुओं की टोली भी निकली तो सड़क किनारे खड़े श्रद्धालुओं के हाथ खुद ब खुद जुड़ने भी लगे।

नागा साधुओं का आशीष पाने के लिए हर कोई आतुर नजर भी आ रहा था। करतब और कौशल का प्रदर्शन भी करते हुए नागाओं की टोली बाबा के धाम की ओर ही बढ़ रही थी।

गौदौलिया से काशी विश्वनाथ धाम के रास्ते पर ही श्रधालुओं की कतार हर- हर महादेव का जयघोष भी कर रही थी।

आचार्य महामंडलेश्वर, महामंडलेश्वर रथ पर ही सवार होकर तो नागा साधु दौड़ते हुए नजर आ रहे थे।

गेट नंबर चार के बाहर पहुंचने पर ही उनके शंख का जयघोष और डमरू निनाद से साधुओं ने प्रवेश भी किया। धाम में पहुंचने के बाद तो नागा साधुओं का उल्लास देखते हुए ही बन रहा था।

कोई धाम में जमीन पर लोट भी रहा था, कोई भाव विह्वल होकर नृत्य करते हुए नजर आ रहा था। दूसरी ओर नागा सन्यासी शस्त्र कौशल का प्रदर्शन भी कर रहे थे।

महाशिवरात्रि पर गंगा घाटों पर उमड़ी श्रद्धालुओं की भीड़ भी
शंख, घंटा घड़ियाल से गूंज उठा था! अस्सी से दशाश्वमेध घाट
महाशिवरात्रि पर अस्सी से दशाश्वमेध घाट तक की तरफ हर ओर शंख, घंटा घड़ियाल और हर- हर महादेव की गूंज हर जगह सुनाई देती रही। केदारेश्वर महादेव मंदिर में जाने वाली केदारघाट की सीढियां पूरी तरह से ही भर गईं।

नागा संन्यासियों पर हुई पुष्पवर्षा
काशी विश्वनाथ धाम में पुष्पवर्षा के साथ ही नागा संन्यासियों का स्वागत भी किया गया। इस दौरान सभी अधिकारी भी मौके पर ही मौजूद रहे।

आचार्य महामंडलेश्वर की अगुवाई में नागा साधु-संन्यासी बग्घी, घोड़े और वाहनों पर ही सवार होकर अखाड़ों से बाहर निकले।

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