
मंदिर और शमशान में समानता का आह्वान
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सरसंघचालक मोहन भागवत ने समाज में समानता और एकता का संदेश देते हुए कहा कि मंदिर से लेकर शमशान तक सभी को समान अधिकार मिलना चाहिए. उन्होंने सामाजिक समरसता पर जोर देते हुए कहा कि भारतीय संस्कृति में सभी को एकसमान देखा जाता है और समाज को इस सिद्धांत पर चलना होगा. यह बयान उन्होंने एक कार्यक्रम के दौरान दिया जिसमें उन्होंने सामाजिक एकता और समानता के महत्व को रेखांकित किया.
मोहन भागवत ने अपने संबोधन में कहा कि समाज में किसी भी तरह का भेदभाव स्वीकार्य नहीं है. उन्होंने स्पष्ट किया कि भारतीय संस्कृति और परंपराएं सभी को समान अवसर और सम्मान प्रदान करने की बात करती हैं. चाहे वह पूजा स्थल हो या अंतिम संस्कार का स्थान, हर व्यक्ति को बिना किसी भेदभाव के अपने अधिकारों का उपयोग करने की स्वतंत्रता होनी चाहिए. उन्होंने कहा कि समाज तभी प्रगति कर सकता है जब सभी वर्गों को समान रूप से सम्मान और अवसर मिले.
उन्होंने यह भी कहा कि सामाजिक एकता के लिए लोगों को अपने मन से भेदभाव की भावना को निकालना होगा. आरएसएस प्रमुख ने जोर दिया कि समाज में ऊंच-नीच की भावना को खत्म करने की जरूरत है और सभी को एकसाथ मिलकर देश के विकास में योगदान देना चाहिए. उन्होंने कार्यकर्ताओं से आह्वान किया कि वे समाज के हर वर्ग तक पहुंचें और समरसता का संदेश फैलाएं.
मोहन भागवत ने अपने संबोधन में यह भी बताया कि आरएसएस लंबे समय से सामाजिक समरसता के लिए काम कर रहा है. संगठन के कार्यकर्ता गांव-गांव जाकर लोगों को एकता और समानता का संदेश दे रहे हैं. उन्होंने कहा कि भारत की ताकत उसकी विविधता में है और इस विविधता को बनाए रखते हुए सभी को एकजुट करना जरूरी है.
इसके साथ ही उन्होंने युवाओं से अपील की कि वे समाज में सकारात्मक बदलाव लाने के लिए आगे आएं. उन्होंने कहा कि नई पीढ़ी को सामाजिक समानता और एकता के मूल्यों को अपनाना चाहिए ताकि देश और समाज को मजबूत किया जा सके. भागवत के इस बयान को सामाजिक समरसता और एकता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है.