गौ माता: संपूर्ण मानवता के लिए पूजनीय

गौ माता को सिर्फ हिंदुत्व से जोड़कर देखना संकीर्ण सोच का परिचायक है। उनका महत्व न केवल धार्मिक, बल्कि वैज्ञानिक, आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से भी अपार है। गौ माता से प्राप्त होने वाले प्रसाद—दूध, दही, घी, मक्खन, गोबर और गौमूत्र—का लाभ संपूर्ण मानवता को मिलता है, न कि केवल किसी एक समुदाय को।

गौ माता: लोक कल्याण की आधारशिला
बाल्यकाल से लेकर जीवन के अंतिम पड़ाव तक, मनुष्य किसी न किसी रूप में गौ उत्पादों पर निर्भर रहता है। चिकित्सक भी कई रोगों के उपचार में दूध का सेवन अनिवार्य बताते हैं। कृषि में गोवंश के योगदान के बिना खेती अधूरी है, जिससे संपूर्ण विश्व के लोग प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से लाभान्वित होते हैं। यहां तक कि गौ माता के जीवन समाप्त होने के बाद भी उनका अस्तित्व लोगों को रोजगार प्रदान करता है।

गौ माता को मात्र एक धर्म से जोड़कर देखना उतना ही तर्कहीन है जितना कि महासागर की तुलना एक कटोरी जल से करना या अनंत ब्रह्मांड की तुलना किसी चित्र में दिख रहे आकाश से करना। गौ माता में 33 कोटि देवताओं का वास बताया गया है—8 वसु, 11 रुद्र, 12 आदित्य, 2अश्विनी कुमार आदि। शास्त्रों के अनुसार, गौ माता की उत्पत्ति समुद्र मंथन के दौरान हुई थी। जब 14 रत्न निकले, उनमें से एक कामधेनु गाय थी, जिसे लोक कल्याण के लिए ऋषियों को समर्पित कर दिया गया।

भगवान श्रीकृष्ण और गौ सेवा

भगवान श्रीकृष्ण ने अपने जीवन का अधिकांश समय गौ सेवा में बिताया। गोविंद और गोपाल नाम स्वयं इस बात का प्रमाण हैं कि वे गायों की सेवा और संरक्षण के लिए ही अवतरित हुए थे। गोकुल भी उसी स्थान को कहा जाता है, जहां गोधन का वास होता है। गौ माता की महिमा इतनी अद्भुत है कि श्रीकृष्ण ने स्वयं उनका संरक्षण कर अपने जीवन को सफल बनाया।

गौ आधारित अर्थव्यवस्था- आत्मनिर्भर भारत की नींव

हमारा भारत कृषि प्रधान देश है और कृषि में गोवंश की भूमिका अतुलनीय है। यदि समाज में आर्थिक स्वावलंबन लाना है, तो गौ आधारित अर्थव्यवस्था को अपनाना होगा। गौ माता केवल धार्मिक पूजन का विषय नहीं हैं, बल्कि आर्थिक और पारिस्थितिकीय संतुलन बनाए रखने में भी सहायक हैं। जैविक खेती में गोबर खाद और गौमूत्र का उपयोग खेतों की उर्वरता को बनाए रखता है और रासायनिक उर्वरकों से होने वाले हानिकारक प्रभावों को भी रोकता है।

गौ सेवा: एक संकल्प

गौ माता की सेवा केवल धार्मिक कर्तव्य नहीं, बल्कि संपूर्ण मानवता की जिम्मेदारी है। हमें अपनी मानसिकता बदलनी होगी और गौ माता के संरक्षण व संवर्धन के लिए सक्रिय भूमिका निभानी होगी। यदि हम आत्मनिर्भर भारत का सपना देख रहे हैं, तो गौ सेवा ही उसका मूल आधार बन सकती है। यह यात्रा लंबी और कठिन जरूर है, लेकिन भगवत कृपा से यह अवश्य संभव होगी। इसलिए, आइए हम सभी अपने सामर्थ्य अनुसार गौ सेवा का संकल्प लें और इसे अपने जीवन का अभिन्न हिस्सा बनाएं।

गौ माता की जय!

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