
गणगौर व्रत का महत्व और पूजन विधि
हिंदू पंचांग के अनुसार गणगौर व्रत चैत्र की नवरात्रि की तृतीया तिथि के दिन मनाया जाता है। यानी चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के दिन मनाया जाता है।
इस बार गणगौर का व्रत 31 मार्च सोमवार के दिन है ।तृतीया तिथि 31 मार्च को 9:11 पर आरंभ हो रही है और 1 अप्रैल को सुबह 5:42 तक रहेगी।उदया तिथि के अनुसार 31 मार्च को गणगौर व्रत की पूजा की जा रही है यह पर्व मुख्य रूप से हरियाणा, राजस्थान, गुजरात ,उत्तर प्रदेश ,मध्य प्रदेश सहित देश के कई हिस्सों में मनाया जाता है।
इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी आयु के लिए और दांपत्य जीवन को सुखमय और मंगलमय बनाने के लिए भगवान शिव और माता पार्वती से आशीर्वाद लेती हैं और कुंवारी कन्याएं मनचाहा वर पाने के लिए इस व्रत का पूजन करती हैं।
गणगौर पूजा का महत्व —-
पौराणिक कथाओं के अनुसार माता पार्वती ने भगवान शिव को अपने पति रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थी ।
एक अन्य कथा के अनुसार माता पार्वती ने चैत्र शुक्ल तृतीया को सभी महिलाओं को सुहाग बांटे थे।
एक अन्य कथा के अनुसार चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया को राजा हिमालय की पुत्री गौरी का विवाह भगवान शंकर के साथ हुआ था।
इसलिए गणगौर के दिन महिलाएं माता पार्वती और भगवान शिव की पूजा करती हैं और व्रत करती हैं ।इसलिए यह पर्व अखंड सुहाग के प्रतीक के रूप में भी मनाया जाता है।
गणगौर पर्व भगवान शिव और माता पार्वती के प्रेम और विश्वास के प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। यह व्रत अच्छे सुखद वैवाहिक और दांपत्य सुख के रूप में मनाया जाता है। इसके अलावा यह पर्व अखंड सौभाग्य की कामना करने का प्रतीक के रूप में मनाया जाता है।
कई जगह यह पर्व 16 दिन का उत्सव होता है ,जो चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की तृतीया से शुरू होता है और चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन समाप्त होता है।
किंतु कई जगह है यह एक दिन के पर्व के रूप में मनाया जाता है ।
इस प्रकार यह 16 दिन का पर्व होता है, इसलिए पूजा में हर चीज 16 चढ़ाई जाती है। जैसे 16 दुर्वा, 16 गुन की माला , 16 श्रृंगार सामग्री और 16 नैवेद्य सामाग्री।
आइये अब जानते हैं पूजन विधि—-
भगवान शिव और माता पार्वती की मिट्टी की आकृति बनाई जाती है । शिव और पार्वती के स्वरूप की प्रतिमा को चौकी पर स्थापित करके, स्वच्छ सुंदर कपड़े पहन कर, संपूर्ण सुहाग की वस्तुएं अर्पित करते हैं।
चंदन ,अक्षत, धूप दीप, नैवेद्य एवं दूर्वा अर्पित करते हैं ।पुष्प चढ़ाते हैं। और पूजा करके सौभाग्य की कामना करते हैं। पूजन सामग्री में 16 बिंदिया 16 चूड़ी 16 रोली 16 पूजन सामग्री चढ़ाते हैं ।
एक बड़ी थाली में चांदी का छल्ला और सुपारी रखकर उसे जल, दूध दही हल्दी कुमकुम घोलकर सुहाग जल तैयार करते हैं ।इस जल से गणगौर की पूजा करते हैं। इस जल से पहले गणगौर माता को छींटे देते हैं फिर अपने ऊपर छींटे लेते हैं ।माता से सुहाग की कामना करते हैं और माता को भोग लगाते हैं। और गणगौर व्रत की कथा सुनते हैं। राजस्थान में यह मुख्य रूप से चूरमा दाल बाटी का भोग लगाया जाता है। इस तरह से व्रत पूर्ण होता है । माता से सिंदूर लेते हैं और सुहाग सामग्री लेते हैं।सायं काल मे मूर्तियों का विसर्जन किया जाता है।