
ओवैसी का नया दांव:
भारत की सियासत में एक नया मोड़ आया है, जहां ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (AIMIM) के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी बिहार के सियासी समीकरण को बदलने की कोशिश में जुटे हैं। लंबे समय से बीजेपी की ‘B टीम’ कहे जाने का दाग झेल रहे ओवैसी अब लालू प्रसाद यादव की राष्ट्रीय जनता दल (RJD) और राहुल गांधी की अगुवाई वाली कांग्रेस के साथ गठबंधन की बात कर रहे हैं। क्या यह महज एक रणनीतिक कदम है, या फिर ओवैसी वाकई में विपक्षी एकता की नई राह तलाश रहे हैं? आइए, इस सियासी ड्रामे के हर पहलू को करीब से समझते हैं।
ओवैसी का सियासी सफर: ‘B टीम’ का दाग और उसकी हकीकत
असदुद्दीन ओवैसी और उनकी पार्टी AIMIM को अक्सर विपक्षी दलों, खासकर कांग्रेस और अन्य क्षेत्रीय पार्टियों, ने बीजेपी की ‘B टीम’ करार दिया है। इसका कारण रहा है AIMIM का उन सीटों पर चुनाव लड़ना, जहां विपक्षी गठबंधन को नुकसान पहुंचता है। खासकर उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में, जहां मुस्लिम वोटरों की अच्छी-खासी तादाद है, ओवैसी की पार्टी के उम्मीदवारों ने कई बार विपक्षी दलों के वोट काटे हैं, जिसका फायदा अप्रत्यक्ष रूप से बीजेपी को मिला।
उदाहरण के लिए, हाल के लोकसभा चुनावों में ओवैसी की पार्टी ने कुछ सीटों पर मजबूत प्रदर्शन किया, जिसके बाद विपक्षी दलों ने उन पर बीजेपी के लिए वोट बांटने का आरोप लगाया। एक सोशल मीडिया पोस्ट में कहा गया कि ओवैसी जहां भी चुनाव लड़ते हैं, वहां विपक्षी वोटों का बिखराव होता है, जिससे बीजेपी को फायदा मिलता है। लेकिन अब ओवैसी इस धारणा को तोड़ने की कोशिश में हैं। बिहार में लालू यादव और राहुल गांधी के साथ गठबंधन की बात करना इस दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।
बिहार में बदलता सियासी समीकरण
बिहार की सियासत हमेशा से जटिल रही है, और यहां वोटों का ध्रुवीकरण जातिगत और धार्मिक आधार पर होता है। लालू प्रसाद यादव की RJD और कांग्रेस का महागठबंधन पिछले कुछ समय से नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले NDA को टक्कर दे रहा है। लेकिन 2025 के विधानसभा चुनावों से पहले ओवैसी का गठबंधन की बात करना एक नया ट्विस्ट ला रहा है।
सोशल मीडिया पर कुछ लोगों का मानना है कि ओवैसी का यह कदम बीजेपी की ‘B टीम’ का ठप्पा हटाने की रणनीति है। एक यूजर ने लिखा कि ओवैसी यह साबित करना चाहते हैं कि वे मुस्लिम वोटों का बिखराव नहीं चाहते और न ही बीजेपी के लिए काम करते हैं। लेकिन कुछ विश्लेषकों का कहना है कि यह कदम महज एक सियासी चाल है, जिसका मकसद बिहार में AIMIM की सियासी जमीन को मजबूत करना है।
क्यों चाहते हैं ओवैसी गठबंधन?
ओवैसी के इस कदम के पीछे कई संभावित कारण हो सकते हैं। इनमें से कुछ प्रमुख बिंदु इस प्रकार हैं:
‘B टीम’ के दाग से मुक्ति: ओवैसी पर लंबे समय से बीजेपी की मदद करने का आरोप लगता रहा है। गठबंधन की बात करके वे यह साबित करना चाहते हैं कि उनकी पार्टी विपक्षी एकता के साथ है और बीजेपी के खिलाफ लड़ाई में योगदान दे सकती है।
मुस्लिम वोटरों का भरोसा जीतना: बिहार में मुस्लिम आबादी एक महत्वपूर्ण वोट बैंक है। RJD और कांग्रेस के साथ गठबंधन करके ओवैसी इस वोट बैंक को अपनी ओर खींच सकते हैं, खासकर उन क्षेत्रों में जहां उनकी पार्टी पहले से मजबूत है, जैसे सीमांचल।
सियासी प्रासंगिकता बढ़ाना: AIMIM ने बिहार में पिछले कुछ चुनावों में अच्छा प्रदर्शन किया है, खासकर 2020 के विधानसभा चुनाव में, जहां उन्होंने पांच सीटें जीतीं। गठबंधन के जरिए ओवैसी अपनी पार्टी की सियासी ताकत को और बढ़ाना चाहते हैं।
नीतीश को चुनौती: नीतीश कुमार की जेडीयू और बीजेपी के गठबंधन को कड़ी टक्कर देने के लिए विपक्ष को एकजुट करना जरूरी है। ओवैसी का गठबंधन इस दिशा में एक रणनीतिक कदम हो सकता है।
राहुल गांधी और लालू यादव की प्रतिक्रिया
राहुल गांधी और लालू यादव के साथ ओवैसी की बातचीत अभी शुरुआती दौर में है, लेकिन सोशल मीडिया पर इसकी खूब चर्चा हो रही है। कुछ लोग इसे विपक्षी एकता की नई शुरुआत बता रहे हैं, तो कुछ इसे ओवैसी की सियासी चाल मान रहे हैं। एक पोस्ट में कहा गया कि ओवैसी ने राहुल गांधी के ‘सरेंडर’ वाले बयान से दूरी बनाकर यह संदेश देने की कोशिश की कि वे गठबंधन के लिए गंभीर हैं।
हालांकि, कुछ लोग इस गठबंधन की संभावना को कमजोर मान रहे हैं। एक यूजर ने लिखा कि ओवैसी का मकसद RJD की कमजोरियों को उजागर करना हो सकता है, न कि वास्तव में गठबंधन करना। यह भी सच है कि लालू यादव और राहुल गांधी के लिए ओवैसी के साथ गठबंधन करना जोखिम भरा हो सकता है, क्योंकि इससे कुछ वोटरों का ध्रुवीकरण हो सकता है।
बिहार में क्या होगा असर?
अगर ओवैसी का RJD और कांग्रेस के साथ गठबंधन होता है, तो बिहार के सियासी समीकरण में बड़ा बदलाव आ सकता है। नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले NDA को कड़ी चुनौती मिल सकती है, खासकर उन सीटों पर जहां मुस्लिम और यादव वोटरों की संख्या ज्यादा है। लेकिन अगर यह गठबंधन नहीं होता, तो ओवैसी की पार्टी फिर से अकेले चुनाव लड़ सकती है, जिससे विपक्षी वोटों का बिखराव हो सकता है।
सोशल मीडिया पर कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि ओवैसी का यह कदम महज दिखावा हो सकता है, ताकि वे मुस्लिम वोटरों को यह दिखा सकें कि वे विपक्षी एकता के लिए तैयार हैं। लेकिन अगर यह गठबंधन साकार होता है, तो यह बिहार की सियासत में एक नया अध्याय शुरू कर सकता है।
ओवैसी की रणनीति: सियासी चाल या सच्ची एकता?
ओवैसी की इस पहल को लेकर दो तरह की राय सामने आ रही हैं। एक ओर, कुछ लोग इसे सियासी चाल मान रहे हैं, जिसका मकसद अपनी पार्टी की प्रासंगिकता बढ़ाना और ‘B टीम’ का ठप्पा हटाना है। दूसरी ओर, कुछ लोग इसे विपक्षी एकता की दिशा में एक सकारात्मक कदम मान रहे हैं।
विशेषज्ञों का कहना है कि ओवैसी की यह रणनीति बिहार में उनकी पार्टी की स्थिति को मजबूत करने की कोशिश है। सीमांचल जैसे क्षेत्रों में AIMIM पहले से ही मजबूत है, और गठबंधन के जरिए वे और सीटें जीतने की उम्मीद कर रहे हैं। लेकिन यह भी सच है कि RJD और कांग्रेस के लिए ओवैसी के साथ गठबंधन करना एक जोखिम भरा फैसला हो सकता है, क्योंकि इससे कुछ हिंदू वोटर उनसे दूरी बना सकते हैं।
भविष्य की राह
बिहार के 2025 विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहे हैं, और ओवैसी का यह कदम सियासी हलकों में चर्चा का विषय बन गया है। अगर यह गठबंधन साकार होता है, तो यह विपक्ष के लिए एक नई ताकत बन सकता है। लेकिन अगर यह सिर्फ एक सियासी चाल है, तो ओवैसी एक बार फिर विवादों के केंद्र में होंगे।
सोशल मीडिया पर लोगों का कहना है कि ओवैसी को यह साबित करना होगा कि वे वास्तव में विपक्षी एकता के लिए प्रतिबद्ध हैं। साथ ही, लालू यादव और राहुल गांधी को भी यह तय करना होगा कि क्या वे ओवैसी के साथ गठबंधन करके NDA को चुनौती देना चाहते हैं, या फिर अकेले ही मैदान में उतरना पसंद करेंगे।
सियासत का नया रंग
ओवैसी का RJD और कांग्रेस के साथ गठबंधन की बात करना बिहार की सियासत में एक नया रंग लेकर आया है। यह कदम ‘B टीम’ के दाग को धोने की कोशिश हो सकता है, या फिर यह एक सोची-समझी रणनीति हो सकती है, जिसका मकसद AIMIM की सियासी ताकत को बढ़ाना है। जो भी हो, यह सियासी ड्रामा बिहार के चुनावी समीकरण को जरूर प्रभावित करेगा। आइए, देखते हैं कि यह कहानी आगे क्या मोड़ लेती है।