
18 जुलाई 2025: भारत भूमि पर स्थित 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक — वैद्यनाथेश्वर ज्योतिर्लिंग, जिसे वैद्यनाथ धाम या बाबा बैद्यनाथ धाम भी कहा जाता है , झारखंड के देवघर जिले में स्थित है। यह स्थान ना केवल आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत पवित्र है, बल्कि इसे “आरोग्य देने वाला शिवलिंग” भी माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि यहां दर्शन करने से समस्त रोग दूर होते हैं और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
देवघर का अर्थ ही है – “देवताओं का घर”, और सच में यह स्थान दिव्यता से परिपूर्ण है।
पौराणिक कथा:
रावण और भगवान शिव की कथा:
श्री शिव महापुराण के चतुर्थ कोटि रुद्रसंहिता के 28 वें अध्याय के अनुसार, रावण परम शिवभक्त था और चाहता था कि भगवान शिव लंका में निवास करें। उसने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कठोर तप किया, फिर भी जब भगवान शिव संतुष्ट होकर प्रकट नहीं हुए तब रावण ने एक-एक कर अपने सिरों को काट कर समर्पित करना शुरू किया l जैसे ही वह दसवां सिर काटने को उद्धृत हुआ भगवान शिव ज्योति स्वरूप स्वयं प्रकट हो गए l उन्होंने अपनी अमोघ दृष्टि से देखकर वैद्य के समान रावण के सिरों को पुनः यथास्थान जोड़ दिया l और वरदान स्वरूप अपना एक शिवलिंग दिया और कहा कि वह जहाँ भी इसे रखेगा, वहीं वे स्थापित हो जाएंगे। किंतु शर्त यह थी कि उसे इसे किसी भी परिस्थिति में भूमि पर नहीं रखना है।
रावण जब शिवलिंग लेकर लंका की ओर जा रहा था, तभी देवताओं ने चिंतित होकर वरुण देव से प्रार्थना की कि कुछ उपाय करें। वरुण देव ने रावण को लघु शंका की तीव्र इच्छा उत्पन्न कर दी। उसी समय रावण देवघर में पहुँचा और एक ग्वाले (वास्तव में भगवान विष्णु) से शिवलिंग पकड़ने को कहा। ग्वाले ने थोड़ी देर बाद शिवलिंग ज़मीन पर रख दिया।
जब रावण लौटा तो वह क्रोधित हुआ और बहुत प्रयास किया शिवलिंग को उठाने का, लेकिन वह जड़ हो चुका था। तब से यह शिवलिंग वैद्यनाथेश्वर के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
मंदिर की वास्तुकला:
वैद्यनाथ मंदिर एक विशाल परिसर में स्थित है, जिसमें 22 मंदिर और छोटे-छोटे अन्य देवी-देवताओं के मंदिर भी हैं।
मुख्य मंदिर में स्थित शिवलिंग काले रंग का अष्टकोणीय पत्थर है।
मंदिर की ऊँचाई लगभग 72 फीट है और इसका शिखर सोने की परत से सुसज्जित है।
मंदिर की दीवारों और स्तंभों पर पारंपरिक भारतीय स्थापत्य कला की सुंदर झलक मिलती है।
यह मंदिर वास्तुकला और अध्यात्म का अनोखा संगम है।
यह शिवलिंग “कामना पूर्ण करने वाला” माना जाता है।
इसे आरोग्य प्रदान करने वाला भी माना गया है। इसलिए भगवान शिव को यहां “वैद्य” रूप में पूजा जाता है।
मान्यता है कि जो भी सच्चे हृदय से बाबा वैद्यनाथ का जलाभिषेक करता है, उसकी सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
श्रावण मास में यह धाम शिवभक्तों से भर जाता है। लाखों श्रद्धालु सुल्तानगंज (बिहार) से गंगा जल लेकर लगभग 105 किलोमीटर पैदल यात्रा करके देवघर पहुंचते हैं।
इस यात्रा को “कांवड़ यात्रा” कहा जाता है।
भक्त पूरे रास्ते “बोल बम” के जयघोष के साथ चलते हैं।
यह भारत की सबसे लंबी और बड़ी धार्मिक यात्राओं में से एक मानी जाती है।
श्रावण सोमवार के दिन यहाँ विशेष भीड़ होती है और जलाभिषेक हेतु कई घंटे तक लंबी कतारें लगती हैं।
पूजा और दर्शन की जानकारी:
पूजा समय: सुबह 4:00 बजे से रात्रि 9:00 बजे तक
विशेष पूजा: रुद्राभिषेक, जलाभिषेक, बेलपत्र अर्पण
भक्त जल, दूध, दही, शहद, घी, गंगाजल आदि से शिवलिंग का अभिषेक करते हैं।
मंदिर में ऑनलाइन दर्शन और पूजा बुकिंग की सुविधा भी उपलब्ध है।
श्रावण मास और महाशिवरात्रि जैसे पर्वों पर सुरक्षा और दर्शन व्यवस्था विशेष रूप से सख्त होती है।
कई श्रद्धालु मानते हैं कि यहाँ जलाभिषेक करने से असाध्य रोग भी दूर हो जाते हैं।
स्थानीय लोगों के अनुसार, कई बार भक्तों को चमत्कारिक अनुभव होते हैं — जैसे अचानक स्वास्थ्य लाभ, कठिन समस्या का समाधान आदि।
बाबा वैद्यनाथ को “चिकित्सक देव” भी कहा जाता है।
कैसे पहुँचें
रेल द्वारा: देवघर जंक्शन से मंदिर लगभग 7-8 किमी की दूरी पर है।
हवाई मार्ग: देवघर एयरपोर्ट (पटना, रांची, दिल्ली आदि से कनेक्टिविटी)।
सड़क मार्ग: झारखंड, बिहार और बंगाल से बस या टैक्सी की सुविधा।
पास के अन्य दर्शनीय स्थल:
1..नौलखा मंदिर: राधा-कृष्ण को समर्पित भव्य मंदिर
2..बसमाहा बाबा मंदिर
3..त्रिकूट पर्वत: रोपवे की सुविधा के साथ दर्शनीय स्थल
4..तपोवन पर्वत: ऋषियों की तपस्थली
बाबा वैद्यनाथ धाम केवल एक तीर्थस्थल नहीं, बल्कि यह श्रद्धा, भक्ति और चिकित्सा का संगम है। यहाँ आने वाले हर भक्त के मन में विश्वास होता है कि बाबा उसकी पुकार अवश्य सुनेंगे। यह ज्योतिर्लिंग ना केवल आध्यात्मिक जागरण का केंद्र है, बल्कि भारत की गहराई से जुड़ी संस्कृति और आस्था का प्रतीक भी है।
हर हर महादेव