भारत की रक्षा शक्ति को नई उड़ान. पांचवीं पीढ़ी का फाइटर जेट जल्द

एएमसीए परियोजना में तेजी

भारत अपनी रक्षा क्षमता को नई ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए तैयार है. रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) ने पांचवीं पीढ़ी के स्वदेशी फाइटर जेट एडवांस्ड मीडियम कॉम्बैट एयरक्राफ्ट (एएमसीए) के विकास में तेजी लाने की योजना बनाई है. यह जेट भारत को विश्व के चुनिंदा देशों की श्रेणी में ला खड़ा करेगा, जो इस तरह के अत्याधुनिक लड़ाकू विमानों का निर्माण कर सकते हैं. सूत्रों के अनुसार 2028 तक इस जेट का प्रोटोटाइप उड़ान भर सकता है. रक्षा मंत्रालय ने हाल ही में इस परियोजना को मंजूरी दी है, जिससे इसके विकास में और गति आने की उम्मीद है.

एएमसीए को 5.5 पीढ़ी का फाइटर जेट माना जा रहा है, जिसमें स्टील्थ तकनीक, सुपर क्रूज क्षमता और उन्नत रडार सिस्टम जैसी विशेषताएं होंगी. यह जेट न केवल भारतीय वायुसेना की ताकत बढ़ाएगा, बल्कि स्वदेशी रक्षा तकनीक के क्षेत्र में भी मील का पत्थर साबित होगा. डीआरडीओ और हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) इस परियोजना पर मिलकर काम कर रहे हैं, जिसमें निजी क्षेत्र की कंपनियों को भी शामिल किया गया है. यह पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप मॉडल भारत के रक्षा क्षेत्र में एक नया अध्याय शुरू करने वाला है.

वर्तमान में केवल अमेरिका, रूस और चीन के पास ही पांचवीं पीढ़ी के फाइटर जेट हैं. भारत का इस दिशा में कदम न केवल उसकी रक्षा तैयारियों को मजबूत करेगा, बल्कि वैश्विक स्तर पर उसकी स्थिति को भी सुदृढ़ करेगा. सोशल मीडिया पर इस खबर को लेकर उत्साह देखने को मिल रहा है. कई लोगों ने इसे भारत के आत्मनिर्भर रक्षा कार्यक्रम की बड़ी उपलब्धि बताया है. विशेषज्ञों का मानना है कि एएमसीए का विकास भारत को रक्षा निर्यात के क्षेत्र में भी एक प्रमुख खिलाड़ी बना सकता है.

इसके अलावा भारत रूस के साथ भी पांचवीं पीढ़ी के फाइटर जेट एसयू-57 को लेकर बातचीत कर रहा है. रूस ने इस जेट को पूर्ण तकनीकी हस्तांतरण और स्थानीय उत्पादन के साथ भारत को देने का प्रस्ताव रखा है. हालांकि भारत का मुख्य फोकस स्वदेशी एएमसीए पर है, लेकिन रक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि दोनों विकल्पों पर विचार करना भारत की रणनीतिक जरूरतों को पूरा कर सकता है. एएमसीए के साथ तेजस मार्क-2 और राफेल जैसे विमानों का संयोजन भारतीय वायुसेना को अभूतपूर्व ताकत प्रदान करेगा.

एएमसीए परियोजना को राष्ट्रीय हित का दर्जा दिया गया है, जिससे इसके लिए संसाधनों और तकनीकी सहायता की कोई कमी नहीं होगी. डीआरडीओ ने दावा किया है कि अगले पांच वर्षों में इस जेट का प्रोटोटाइप तैयार हो सकता है. यह परियोजना न केवल तकनीकी दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह भारत के युवा वैज्ञानिकों और इंजीनियरों के लिए भी एक बड़ा अवसर है. इस जेट के निर्माण से हजारों नौकरियां पैदा होंगी और स्वदेशी रक्षा उद्योग को बढ़ावा मिलेगा. यह कदम भारत के आत्मनिर्भरता के सपने को साकार करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है.

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