
7 July 2025: गुरु पूर्णिमा एक पवित्र हिंदू त्यौहार है जिसे आषाढ़ मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इस दिन चारों वेदों के ज्ञाता महर्षि वेदव्यास का भी जन्म हुआ था । महर्षि वेदव्यास ने मानव जाति को वेदों का ज्ञान दिया था । यही कारण है कि आषाढ़ की पूर्णिमा तिथि को वेदव्यास के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है ।
गुरु पूर्णिमा, गुरु के प्रति अटूट श्रद्धा, गुरु पूजा और कृतज्ञता का दिन है। इस दिन परमेश्वर शिव ने दक्षिणामूर्ति के रूप में ब्रह्मा के चार मानसपुत्रों को वेदों का ज्ञान प्रदान किया था और इसी दिन महाभारत के रचयिता वेद व्यास जी का जन्मदिन भी है। उनके सम्मान में गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है।
गुरु महिमा में कहा है, गुरुर्देवो गुरुर्धर्मो, गुरौ निष्ठा परं तपः। गुरोः परतरं नास्ति, त्रिवारं कथयामि ते। यानी गुरु ही देव हैं, गुरु ही धर्म हैं, गुरु में निष्ठा ही परम धर्म है। गुरु से अधिक और कुछ नहीं है। भगवान विष्णु का अवतार होने के बाद भी कृष्ण गुरु सांदीपनि से शिक्षा ग्रहण करते हैं, भगवान राम गुरु वशिष्ठ से ज्ञान प्राप्त करते हैं। सामान्य मनुष्य से लेकर अवतार तक गुरु की आवश्यकता सबको होती है।
कब है गुरु पूर्णिमा -2025
गुरु पूर्णिमा इस बार 10 जुलाई को रात 1 बजकर 36 मिनट से अगले दिन 11 जुलाई को 2 बजकर 6 मिनट तक रहेगा ।
हिंदू पंचांग के अनुसार गुरु पूर्णिमा का पर्व 2025 में 10 जुलाई को मनाया जाएगा। आषाढ़ मास की इस पूर्णिमा पर पवित्र नदी में स्नान करने और दान पुण्य के कार्य करने का खास महत्व शास्त्रों में बताया गया है। इस दिन भगवान विष्णु के साथ मां लक्ष्मी जी की भी पूजा विशेष रूप से की जाती है। साथ ही इस दिन घरों में सत्य नारायण भगवान की कथा कराई जाती है । इस दिन पवित्र नदी में स्नान करने से हर तरह के पाप से मुक्ति मिलती है और महापुण्य की प्राप्ति होती है।
आइए आपको जानते हैं गुरु पूर्णिमा की पूजा का शुभ मुहूर्त, महत्व और पूजाविधि।
गुरु पूर्णिमा की तिथि
वैदिक पंचांग के अनुसार, 10 जुलाई को गुरु पर्णिमा मनाई जाएगी। क्योंकि पूर्णिमा तिथि 10 जुलाई को रात 1 बजकर 36 मिनट पर शुरू होगी और यह 11 जुलाई को रात 2 बजकर 06 मिनट पर खत्म होगी। इसलिए गुरु पूर्णिमा 2025 , 10 जुलाई को मनाई जाएगी।
गुरु पूर्णिमा का महत्व
पौराणिक मान्यताओं में बताया गया है कि लगभग 3000 ईसा पूर्व, आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को वेद व्यास जी का जन्म हुआ था। इसलिए हर साल इस दिन को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाते हैं। यह दिन वेद व्यास जी को समर्पित है। पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहते हैं। जिन्होंने महाभारत श्रीमदभागवत पुराणों और उपनिषद जैसे महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की । यह दिन गुरु शिष्य परंपरा का उत्सव है।
!साथ ही पूर्णिमा का दिन होने की वजह से इस दिन विष्णु भगवान और मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है। इस दिन गुरुओं का सम्मान किया जाता है और साथ ही उन्हें गुरु दक्षिणा भी दी जाती है। इस दिन गुरु और सभी बड़ों का सम्मान करना चाहिए। गुरु पूर्णिमा पर व्रत, दान और पूजा का भी महत्व है। व्रत रखने और दान करने से ज्ञान मिलता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। भगवान शिव ने सबसे पहले सप्त ऋषियों को ज्ञान दिया था और वह पहले गुरु बने थे इसलिए गुरु पूर्णिमा का दिन भगवान शिव की पूजन के लिए भी महत्वपूर्ण है । यह दिन शिक्षकों ,आचार्य और गुरुओं के प्रति कृतज्ञता अर्पित करने का दिन है।
इस दिन गरीबों और जरूरतमंदों को अन्न, धन और वस्त्र का दान किया जाता है। यह दिन ज्ञान भक्ति और समर्पण का प्रतीक है।
गुरु पूर्णिमा की पूजाविधि
गुरु पूर्णिमा पर सत्यनारायण की कथा का महत्व है। भगवान विष्णु की पूजा स्वयं करके भी शुभ फल पा सकते हैं। भगवान विष्णु की पूजा में तुलसी, धूप, दीप, गंध, पुष्प और पीले फल चढ़ाएं। श्रीहरि का स्मरण करें और अपनी मनोकामना बताएं। भक्ति भाव से पूजा करना जरूरी है। पूजा के बाद भगवान को अलग-अलग तरह के पकवानों का भोग लगाएं और प्रणाम करें और फिर भोग को प्रसाद के रूप में सभी लोगों में बांट दें।
गुरु पूर्णिमा का संदेश
इस दिन गुरुओं का सम्मान किया जाता है और साथ ही उन्हें गुरु दक्षिणा भी दी जाती है। कि इस दिन गुरु और बड़ों का सम्मान करना चाहिए। जीवन में मार्गदर्शन के लिए उनका आभार व्यक्त करना चाहिए । गुरु पूर्णिमा पर व्रत, दान और पूजा का भी महत्व है। व्रत रखने और दान करने से ज्ञान मिलता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
गुरु पूर्णिमा दिन के बहुत से लोग गुरु बनाते हैं और गुरु दीक्षा लेते है।
गुरु के 5 श्लोक इस प्रकार हैं
- गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥
इसका अर्थ है: गुरु ब्रह्मा है, गुरु विष्णु है, गुरु ही शंकर (महेश्वर) है; गुरु ही साक्षात परब्रह्म है, उन सद्गुरु को मेरा प्रणाम। - ध्यानमूलं गुरुर्मूर्तिः पूजामूलं गुरोः पदम्। मंत्रमूलं गुरोर्वाक्यं मोक्षमूलं गुरोः कृपा॥
इसका अर्थ है: गुरु की मूर्ति ध्यान का मूल है, गुरु के चरण पूजा का मूल है, गुरु का वचन मंत्र का मूल है, और गुरु की कृपा मोक्ष का मूल है। - अखंडमंडलाकारं व्याप्तं येन चराचरम्। तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः॥
इसका अर्थ है: जिन्होंने संपूर्ण ब्रह्मांड को व्याप्त कर रखा है, जिन्होंने उस परम पद को दिखाया है, उन गुरु को नमस्कार है। - त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव। त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव, त्वमेव सर्वं मम देव देव॥
इसका अर्थ है: हे गुरु, आप ही माता हैं, आप ही पिता हैं, आप ही भाई हैं, आप ही मित्र हैं। आप ही विद्या हैं, आप ही धन हैं, आप ही सब कुछ हैं, हे मेरे देवों के देव! - गुरु शुश्रूषया विद्या पुष्कलेन् धनेन वा। अथ वा विद्यया विद्या, चतुर्थो नाऽप्यलप्यते॥
इसका अर्थ है: गुरु की सेवा से या धन से या विद्या से विद्या प्राप्त होती है, और चौथी बात (इनमें से) कुछ भी दुर्लभ नहीं है।
ये श्लोक गुरु की महिमा और महत्व को दर्शाते हैं।