
23 जुलाई 2025: गुरु पुष्य योग: सावन शिवरात्रि : हरियाली अमावस्या: इस दुर्लभ महासंयोग में करें ये महा उपाय! चमक जाएगी किस्मत- क्या करें क्या ना करें!
सावन का महीना हिन्दू धर्म में अत्यंत पावन माना जाता है। वर्ष 2025 में सावन की अमावस्या और हरियाली अमावस्या का शुभ पर्व 24 जुलाई 2025 को मनाया जाएगा। इस बार की अमावस्या विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि इस दिन न केवल सावन की अमावस्या और हरियाली अमावस्या है, बल्कि साथ ही गुरु पुष्य योग भी बन रहा है। गुरु -पुष्य नक्षत्र योग अत्यंत दुर्लभ और शुभ संयोग माना जाता है।यह त्रिवेणी संयोग धार्मिक, आध्यात्मिक और ज्योतिषीय दृष्टि से अत्यंत फलदायक माना गया है।
हरियाली अमावस्या कब है?
- तिथि: 24 जुलाई 2025, गुरुवार
- अमावस्या तिथि प्रारंभ: 24 जुलाई सुबह 02:28 बजे
- अमावस्या तिथि समाप्त: 25 जुलाई रात्रि 12:42 बजे
- पुष्य नक्षत्र आरंभ: 24 जुलाई शाम 05:34 बजे
- पुष्य नक्षत्र समाप्त: 25 जुलाई शाम 05:13 बजे
गुरु पुष्य योग खरीदारी, पूजा-पाठ और शुभ कार्यों के लिए अत्यंत शुभ माना गया है।
हरियाली अमावस्या का महत्व
हरियाली अमावस्या वर्षा ऋतु के मध्य आती है, जब प्रकृति अपनी पूर्ण शोभा में रहती है। पेड़-पौधे हरे-भरे हो जाते हैं और धरती पर हरियाली छा जाती है। यह दिन धरती माँ और प्रकृति के प्रति कृतज्ञता प्रकट करने का पर्व है।
धार्मिक महत्व:
- इस दिन भगवान शिव और पार्वती जी की पूजा का विशेष महत्व है।
- महिलाएँ पति की दीर्घायु, परिवार की समृद्धि और संतान सुख की कामना से व्रत करती हैं।
- यह दिन पितृ तर्पण और श्राद्ध के लिए भी श्रेष्ठ माना गया है।
प्रकृति पूजन का पर्व:
- इस दिन पीपल, नीम, बेल, तुलसी जैसे पौधे लगाना और उनकी पूजा करना अत्यंत पुण्यदायक होता है।
- पर्यावरण की रक्षा और संतुलन बनाए रखने के लिए यह दिन एक विशेष संदेश देता है।
गुरु पुष्य योग: क्यों है यह इतना विशेष?
पुष्य नक्षत्र को “राज नक्षत्र” कहा जाता है, और जब यह गुरुवार के दिन आता है तो वह योग अत्यंत मांगलिक और सिद्धकारी माना जाता है।
गुरु पुष्य योग के लाभ:
- इस दिन सोना, चांदी, रत्न, संपत्ति, वाहन आदि खरीदना अत्यंत शुभ माना जाता है।
- नए व्यापार या उपक्रम की शुरुआत करने के लिए उत्तम समय।
- मंत्र सिद्धि, तंत्र साधना, आयुर्वेदिक औषधि का सेवन/आरंभ और आध्यात्मिक क्रियाएं विशेष फल देती हैं।
- विद्यार्थियों के लिए यह दिन शिक्षा आरंभ या गुरु पूजन हेतु उपयुक्त है।
इस दिन क्या करें:
पूजा विधि (शिव पूजन):
- प्रातःकाल स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- शिवलिंग पर जल, दूध, दही, घी, शहद और गंगाजल से अभिषेक करें।
- बेलपत्र, आक, धतूरा, भस्म, चावल, रोली, चंदन चढ़ाएं।
- शिव पंचाक्षरी मंत्र “ॐ नमः शिवाय” का जाप कम से कम 108 बार करें।
- व्रत रखने वाले दिनभर फलाहार करें और संध्या समय कथा व आरती करें।
अन्य कार्य:
- पितरों को जल अर्पित करें, तर्पण करें।
- वृक्षारोपण करें — यह बहुत शुभ माना गया है।
- ब्राह्मण को भोजन कराएं व दान करें।
- पुष्य योग में सोने-चांदी, नए कपड़े, घर-गाड़ी आदि की खरीदारी करें।
टोटके और उपाय इस दिन के लिए:
- अगर किसी व्यक्ति की कुंडली में गुरु दोष हो या धन संबंधी बाधा हो, तो इस दिन गुरु के बीज मंत्र का जाप करें।
- घर के मुख्य द्वार पर हल्दी और गौमूत्र मिलाकर स्वस्तिक बनाएं, इससे वास्तुदोष नष्ट होता है।
- गरीबों को पीली वस्तु (चना, वस्त्र, हल्दी, सोना) का दान करें।
24 जुलाई 2025 का दिन अपने आप में एक विशेष अध्यात्मिक अवसर है।
- सावन की अमावस्या,
- हरियाली अमावस्या,
- और गुरु पुष्य नक्षत्र —
इन तीनों का अद्भुत संगम न केवल आस्था को मजबूती देता है, बल्कि जीवन में सुख, शांति, और समृद्धि लाने का एक दिव्य द्वार भी खोलता है।
इस दिन को श्रद्धा, भक्ति और सेवा के साथ मनाएं, प्रकृति से जुड़ें, और अपने जीवन को ऊर्जावान बनाएं।: व्रत कथा, महत्व और पूजन*
सावन की शिवरात्रि क्या है?
सावन की शिवरात्रि, भगवान शिव को समर्पित एक अत्यंत पवित्र व्रत और पर्व है, जो सावन महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। यह व्रत विशेष रूप से शिव भक्तों के लिए बेहद शुभ माना जाता है क्योंकि सावन का महीना स्वयं शिव को अत्यंत प्रिय है।
शिवरात्रि की पौराणिक कथा
पुराणों के अनुसार, समुद्र मंथन के समय जब हलाहल विष निकला था, तब संपूर्ण ब्रह्मांड की रक्षा हेतु भगवान शिव ने उस विष को अपने कंठ में धारण किया। विष के प्रभाव से उनका कंठ नीला हो गया और उन्हें नीलकंठ कहा जाने लगा। कहा जाता है कि यह घटना शिवरात्रि की रात को ही घटी थी।
ऐसी भी कथा है कि, पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में पाने के लिए हिमालय क्षेत्र में कठोर तपस्या की थी। उन्होंने अनेक वर्षों तक केवल फल, फिर केवल बेलपत्र, और अंत में वायु पर रहकर शिव की उपासना की।
सावन के ही महीने में चतुर्दशी की रात्रि को शिव प्रकट हुए और पार्वती को स्वीकार किया। उसी दिन को सावन की शिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है।
विशेषकर कुवारें युवक-युवतियाँ इस दिन उत्तम जीवनसाथी की कामना से व्रत करते हैं।
11 जुलाई से आरंभ हुई कावड़ यात्रा का समापन 23 जुलाई को शिवरात्रि पर होगा l कांवड़ यात्रा का जल सावन माह की शिवरात्रि पर चढ़ाया जाता है l इस वर्ष 2025 में सावन माह की शिवरात्रि 23 जुलाई, बुधवार के दिन पड़ रही है l सावन माह में कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन भोलेनाथ के लिए व्रत किया जाता है l और इसी दिन कावड़ जल श्रद्धापूर्वक शिवलिंग पर अर्पित किया जाता है l इस दिन को सावन शिवरात्रि या श्रावण शिवरात्रि कहते हैं l
सावन की शिवरात्रि का महत्व
- यह दिन भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए सर्वोत्तम माना गया है।
- जो व्यक्ति सच्चे मन से व्रत और पूजा करता है, उसे शिव की कृपा से संतान, सुख, स्वास्थ्य, और समृद्धि प्राप्त होती है।
- शिवरात्रि का व्रत मन, वचन और कर्म से पवित्र रहने का प्रतीक है।
सावन शिवरात्रि व्रत एवं पूजन विधि
प्रातःकाल की तैयारी:
- सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान करें।
- स्वच्छ वस्त्र धारण करें और व्रत का संकल्प लें।
शिवलिंग की पूजा विधि:
- शिवलिंग का अभिषेक करें – गंगाजल, दूध, दही, शहद, घी और शक्कर से रुद्राभिषेक करें।
- बेलपत्र, धतूरा, भांग, सफेद पुष्प और चंदन भगवान शिव को अर्पित करें।
- “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप कम से कम 108 बार करें।
- दीपक जलाकर शिव चालीसा या शिव स्तोत्र का पाठ करें।
रात्रि पूजन और जागरण:
- रात्रि को पुनः अभिषेक करें और चार प्रहर की पूजा करें।
- शिव पंचाक्षर मंत्र (“ॐ नमः शिवाय”) या महामृत्युंजय मंत्र का जाप करें।
- व्रतधारी रातभर जागरण करते हैं और शिव भजन गाते
व्रत के नियम
- उपवास के दौरान अन्न का सेवन न करें, फलाहार या केवल जल ग्रहण करें।
- मानसिक और शारीरिक पवित्रता बनाए रखें।
- व्रत के दिन निंदा, क्रोध और असत्य वचन से बचें।
- जरूरतमंदों को दान दें और गौ सेवा करें।
सावन की शिवरात्रि एक ऐसा पर्व है जो आत्मा की शुद्धि, भक्ति और शिव कृपा प्राप्त करने का माध्यम है। यह दिन भौतिक और आध्यात्मिक उन्नति दोनों के लिए अत्यंत फलदायक है। संकल्प, संयम और श्रद्धा से किया गया यह व्रत जीवन के समस्त संकटों को दूर करता है और शिव की कृपा प्राप्त होती है।
हर हर महादेव l