मालदीव की आजादी के संघर्ष की कहानी: आजादी की 60वीं सालगिरह पर पीएम मोदी है मुख्य अतिथि

26 जुलाई 2025: मालदीव मना रहा अपनी आजादी की 60 वी सालगिरह, आजादी के इस जश्न में पीएम मोदी हैं मुख्य अतिथि…

मालदीव अपनी खूबसूरती के लिए विश्व भर में जाना जाता है, यहां 1192 द्वीप,कई खूबसूरत बीच और लगून ,पर्यटकों के लिए हमेशा से ही एक पसंदीदा स्थान रहे है।

मालदीव आज अपनी आज़ादी की 60वीं सालगिरह मना रहा है….जहां पीएम मोदी मुख्य अतिथि के तौर पर शामिल हुए….भव्य समारोह रहा….दरअसल मालदीव की कहानी सिर्फ़ इसकी खूबसूरती तक सीमित नहीं है…ये कहानी है संघर्ष की, एकता की और रणनीतिक सूझबूझ की… 26 जुलाई 1965… यही वो तारीख है जब तमाम संघर्षों के बाद मालदीव ने ब्रिटिश सत्ता से आज़ादी पाई थी …बहुत कठिन समय था … साल 1887 में सुल्तान मोहम्मद मुइनुद्दीन…. ने ब्रिटिश गवर्नर हैमिल्टन-गॉर्डन के साथ एक समझौता किया…जिसके बाद मालदीव एक ब्रिटिश प्रोटेक्ट्रेट बन गया…मतलब आंतरिक प्रशासन तो मालदीव के पास था, लेकिन रक्षा और विदेश नीति पर पूरा कंट्रोल ब्रिटेन का था…उस दौर में भारतीय बोहरा व्यापारी मालदीव की अर्थव्यवस्था पर हावी थे ..उनका दबदबा चलता था…जो स्थानीय लोगों को रास नहीं आता था…इश वजह से उनमें नाराजगी देखी जाता थी…….ब्रिटेन ने इसी का फायदा उठाया औऱ अपना दखल और ज्यादा बढ़ा लिया.. 1886 में सुल्तान को हटाकर मोहम्मद मुइनुद्दीन को गद्दी पर बैठाया गया…जिनका झुकाव पहले से ही अंग्रेजों की ओर था…ये एक तरह का रणनीतिक समझौता था जब मालदीव ने सीधे उपनिवेश बनने की बजाय ‘सुरक्षित उपनिवेश’ का रास्ता अपनाया….लेकिन उससे हुआ ये कि अंग्रेजों की मौजूदगी …उनका दखल बढ़ता रही… उन्होंने द्वीपों पर सैन्य अड्डे तक बना डाले…. फिर आई 1958 की बात…सिर्फ 31 साल की उम्र में इब्राहिम नासिर मालदीव के प्रधानमंत्री बने…उन्होंने देश की औद्योगिक क्षमता को आकार देना शुरू किया….1960 के दशक में दो बड़े बदलाव हुए …. बोहरा व्यापारियों को राजधानी माले से निकाल दिया गया….औऱ देश के दक्षिणी हिस्से में विद्रोह को कुचलने पर सरकार की आलोचना हुई……

इतिहासकार बताते हैं कि यही वो समय था जब मालदीव ने साबित किया कि अब वो पूर्ण स्वतंत्रता के लिए तैयार है… और फिर 26 जुलाई 1965 को इब्राहिम नासिर और ब्रिटिश प्रतिनिधि माइकल वॉकर के बीच स्वतंत्रता संधि पर हस्ताक्षर हुए…..ये संधि कोलंबो में ब्रिटिश हाई कमिश्नर के घर पर हुई थी…..इसके साथ ही मालदीव को रक्षा और विदेश नीति पर पूरा नियंत्रण मिला और वो एक संपूर्ण स्वतंत्र राष्ट्र बन गया..

भारत ने दी सबसे पहले मान्यता:
.दो महीने के अंदर मालदीव ने संयुक्त राष्ट्र की सदस्यता हासिल कर ली…इसके अलावा सबसे पहले जिसने मालदीव की आज़ादी को मान्यता दी…थी वो था भारत… भारत और मालदीव के रिश्तों में नई गर्मजोशी आई…1968 में जनमत संग्रह हुआ 81 परसेंट लोगों ने गणराज्य बनने के पक्ष में वोट दिया….यानी 853 साल पुरानी राजशाही खत्म… और इब्राहिम नासिर पहले राष्ट्रपति बने…हालांकी आज़ादी के बाद चुनौतियां आसान नहीं थीं….सीमित संसाधन,मछली और नारियल पर निर्भरता,राजनीतिक अस्थिरता थी और अनुभव की कमी भी थी……इन सभी परेशानीयों के बाद भी मालदीव ने हार नहीं मानी…उसने अपने पर्यटन सेक्टर को GLOBAL LEVEL पर खड़ा किया और आज दुनिया के टॉप ट्रैवल डेस्टिनेशन्स में शामिल है…तो यही है मालदीव की आजादी की कहानी…

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