भारत का विदेशी मुद्रा भंडार फिर घटा. जानें आश्चर्यजनक कारण

मुद्रा भंडार में कमी

भारत का विदेशी मुद्रा भंडार हाल ही में फिर से कम हुआ है. रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के अनुसार 30 मई 2025 को समाप्त सप्ताह में यह भंडार 1.23 अरब डॉलर घटकर 691.49 अरब डॉलर पर आ गया. यह लगातार तीसरा महीना है जब विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट दर्ज की गई है. तीन महीनों में कुल 60 अरब डॉलर की कमी आई है जो अर्थव्यवस्था के लिए चिंता का विषय बन रहा है. यह भंडार देश की आर्थिक स्थिरता का महत्वपूर्ण संकेतक है और इसमें कमी कई कारणों से हो सकती है.

विशेषज्ञों का मानना है कि विदेशी मुद्रा भंडार में कमी का मुख्य कारण वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताएं और भारतीय रुपये की कीमत को स्थिर रखने के लिए रिजर्व बैंक का हस्तक्षेप है. हाल के महीनों में रुपये पर दबाव बढ़ा है जिसके कारण आरबीआई को विदेशी मुद्रा बेचनी पड़ी. इसके अलावा वैश्विक व्यापार में कमी और आयात बिलों में वृद्धि ने भी भंडार पर असर डाला है. विदेशी निवेशकों द्वारा भारतीय शेयर बाजार से पूंजी निकासी भी एक महत्वपूर्ण कारण है.

वैश्विक स्तर पर बढ़ती ब्याज दरें और भू-राजनीतिक तनाव भी भारत के विदेशी मुद्रा भंडार पर असर डाल रहे हैं. अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपये की कमजोरी ने स्थिति को और जटिल किया है. विशेषज्ञों का कहना है कि वैश्विक बाजारों में अनिश्चितता के कारण विदेशी निवेशक सुरक्षित निवेश विकल्पों की ओर रुख कर रहे हैं. इससे भारत जैसे उभरते बाजारों में पूंजी प्रवाह प्रभावित हुआ है.

विदेशी मुद्रा भंडार में लगातार कमी से देश की आर्थिक स्थिरता पर सवाल उठ रहे हैं. यह भंडार आयात बिलों का भुगतान करने और रुपये की स्थिरता बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. भंडार में कमी से आयात महंगा हो सकता है जिसका असर आम जनता पर भी पड़ सकता है. विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार और रिजर्व बैंक को इस स्थिति से निपटने के लिए ठोस कदम उठाने होंगे.

रिजर्व बैंक और सरकार इस स्थिति को नियंत्रित करने के लिए कई उपाय कर रहे हैं. विदेशी निवेश को आकर्षित करने और निर्यात को बढ़ावा देने की दिशा में प्रयास तेज किए गए हैं. विशेषज्ञों का सुझाव है कि आत्मनिर्भर भारत अभियान को और मजबूत करने से आयात पर निर्भरता कम होगी. साथ ही वैश्विक बाजारों में स्थिरता आने पर भंडार में सुधार की उम्मीद है. जनता और निवेशकों को इस स्थिति पर नजर रखने की जरूरत है ताकि आर्थिक नीतियों का सही मूल्यांकन हो सके.

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