
खबर प्रधान डेस्क: गुरु एक संस्कृत का शब्द है —
गुरु दो शब्दों से मिलकर बना है ।
गु का अर्थ है अंधकार ।
और रू का अर्थ है हटाना।
इन दोनों के संयोजन से शब्द बनता है –गुरु!
जिसका अर्थ होता है एक ऐसा व्यक्ति जो हमारे मन से अंधकार यानी अज्ञानता को दूर करता है।
गुरु पूर्णिमा एक विशेष अवसर है। आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं । इस दिन का एक गहरा आध्यात्मिक महत्व है। इस दिन आदि गुरु भगवान शिव ने सप्त ऋषियों को योग का ज्ञान दिया था। इस दिन महर्षि वेदव्यास की जयंती भी मनाई जाती है। इसके साथ ही पूर्णिमा के दिन से ही चातुर्मास भी प्रारंभ होते हैं । जो पूरे मानसून के दौरान के पवित्र 4 महीने होते हैं। इन चार महीनों में सभी साधु संत किसी एक स्थान पर जाकर अपने शिष्यों को ज्ञान देते हैं।
प्रथम गुरु के रूप में मां एक बच्चे को इस नए जगत से परिचित कराती है। और जीवन में पहला कदम उठाना सिखाती है । इसके अलावा अगर हम दूसरे नजरिए से देखें तो हमारी पांचो ज्ञानेंद्रिय कान, नाक ,नेत्र त्वचा और जिह्वा , जो बाहरी दुनिया से संवेदनाएं प्राप्त करती है।
हमारी ज्ञानेंद्रिय जगत से प्राप्त जानकारी को एकत्र करती हैं मन उन्हें समझता है, बुद्धि निर्णय लेती है, अहंकार अनुभव को बनता है । कर्मेंद्रियां क्रिया करती हैं और मन उसे स्मृति के रूप में दर्ज करता है । गुरु ज्ञान के जिज्ञासों को ज्ञान प्रदान करता है।
गुरु पूर्णिमा सीखने ज्ञान अर्जन करने और कृतज्ञता व्यक्त करने का त्यौहार है। सच्चे गुरु की उपस्थिति महत्वपूर्ण है चाहे वह आध्यात्मिक गुरु हो कोई शिक्षक हो ,प्रशिक्षक हो माता-पिता हों या कोई मार्गदर्शन हो। आज के युग में लोगों द्वारा नैतिकता पर विचार नहीं करने और गलत और सही कार्यों के बीच अंतर नहीं कर पाने के कारण सामाजिक ताना-बाना बिखर रहा है। गुरु की उपस्थिति मात्र से ही लोगों को गलत रास्ते पर जाने से रोका जा सकता है। गुरु पूर्णिमा का शाश्वत संदेश हमें ज्ञान प्राप्त करना और मन से शक्ति के मार्गदर्शन प्राप्त करना है।