
कर्नाटक में मुख्यमंत्री बदलने की मांग एक बुलुबला बनकर खतम हो गई …डी के शिवकुमार और उनके समर्थकों के उबाल को फिलहाल शांत कर दिया गया है लेकिन कब तक…..सवाल ये भी है डीके शिवकुमार कब तक चुप बैठेंगे……..कांग्रेस आलाकमान ने सिद्धारमैया को ही सीएम बनाए रखने के पक्ष में फैसला लिया…. इससे डीके शिवकुमार और उनके समर्थक जरूर मायूस हुए हैं.,,….तमाम सियासी उथल पुथल के बाद कांग्रेस हाईकमान ने साफ कर दिया है कि सिद्धारमैया ही मुख्यमंत्री बने रहेंगे और नेतृत्व परिवर्तन की कोई योजना नहीं है. अब देखा जाए तो ये घटना…. एक दिन की बगावत नहीं हो सकती …इसकी चिंगारी कई दिनों से सुलग रही थी… कर्नाटक कांग्रेस के भीतर चल रही सत्ता की आपसी खींचतान अब बाहर आ चुकी है…कांग्रेस नेतृत्व भले ही सब ऑल इज वेल की तस्वीर दिखाता रहे….,
आखिर शिवकुमार को क्यों पीछे हटना पड़ा…..
जहां सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार के बीच तनाव लंबे समय से चल रहा था. अब आलाकमान के फैसले के बाद अब ताजा ताजा सवाल ये उठाया जा रहा है कि क्या सिद्धारमैया को हटाना कांग्रेस के लिए इतना मुश्किल है….आखिर शिवकुमार को क्यों पैर पीछे करने पड़े…..दरअसल इस दरार की नींव तो तभी पड़ गई थी जब मई 2023 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की जीत हुई थी औऱ उसके बाद से ही मुख्यमंत्री पद को लेकर सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार के बीच खींचतान शुरू हो गई थी. उस समय डीके शिवकुमार सीएम पद के प्रबल दावेदार माने जा रहे थे…क्योंकि पार्टी की जीत में उनका ज्यादा योगदान था…. वोकालिंगा समुदाय के समर्थन ने कांग्रेस को सत्ता तक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई थी और वोकालिंगा समुदाय से आते हैं शिवकुमार…….फिर भी कांग्रेस ने खेल खेलते हुए सिद्धारमैया को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाया….कर्नाटक की सियासत में सिद्धारमैया भी काफी सीनियर अनुभवी और मंझे हुए नेता है….साथ ही कुरुबा समुदाय से आते हैं. …
ढाई-ढाई साल की सत्ता में सीएम बनाने का था वादा
135 विधायकों में से बहुमत हासिल कर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर उन्होंने कब्जा जमाया. और डीके शिवकुमार को डिप्टी सीएम पद पर संतोष करना पड़ा….इस दौरान एक खास तरह का बंटवारा भी किया गया…और दोनों नेताओं को संतुष्ट करते हुए ढाई-ढाई साल के सत्ता में सीएम पद पर बने रहने की बात की….हालांकि इसे कभी आधिकारिक तौर पर स्वीकार नहीं किया गया…..डी के शिवकुमार और उनके समर्थकों के बीच भारी निराशा रही…लेकिन वक्त का इंतजार करते रहे….हाल ही में शिवकुमार के समर्थकों ने फिर से नेतृत्व परिवर्तन की मांग उठाई….
2028 के चुनाव में कांग्रेस को मिल सकती है हार
समर्थकों ने दावा ये किया कि 138 में से 100 विधायक डीके के समर्थन में हैं और अगर नेतृत्व परिवर्तन नहीं हुआ तो 2028 के चुनाव में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ सकता है..ये एक तरह से चेतावनी भी दी गई….इस बयान ने कर्नाटक से लेकर दिल्ली तक सियासी हलकों में हड़कंप मचा दिया. हालांकि, कांग्रेस हाईकमान ने तुरंत हस्तक्षेप करते हुए अपने पक्के प्यादे रणदीप सिंह सुरजेवाला को बेंगलुरु भेजा और वहां के बिगड़े हालातों को संभालने के लिए आदेश दिया… सुरजेवाला ने दोनों ओऱ के विधायकों के साथ बैठकें की…और साफ किया कि सिद्धारमैया को हटाने का फिलहाल कोई इरादा नहीं है….डीके शिवकुमार ने भी सार्वजनिक रूप से आकर कह दिया सिद्धारमैया को हमारा समर्थन जारी रहेगा…..अब समझना ये है कि क्या सिद्धारमैया की स्थिति इतनी मजबूत है कि 100 विधायकों का समर्थन भी डीके शिवकुमार को कुर्सी नहीं दिला पाया…. सबसे अहम है सिद्धारमैया का कुरुबा समुदाय से आना. और कांग्रेस ने जो देशभर में जातिगत जनगणना का मुद्दा छेड़ा है….वो डैमेज हो रहा था….
कांतराज आयोग के आंकड़े OBC के पक्ष में
ये समुदाय कांग्रेस की जातिगत समीकरणों में अहम भूमिका निभाता है. उन्हें हटाने से पार्टी की जाति की रणनीति को बड़ा झटका लग सकता है, दूसरा सिद्धारमैया को विधायकों का बहुमत में समर्थन प्राप्त है, जो उन्हें हटाने की राह में सबसे बड़ी बाधा है ….जबकि शिवकुमार वोकालिंगा समुदाय से आते हैं. उनके पास संगठन की शक्ति भी है विधायकों का समर्थन भी है इसके बावजूद, उनकी राह आसान नहीं है. उनके समर्थकों का दावा है कि उन्होंने 2023 की जीत में जो निर्णायक भूमिका निभाई, उसका ईनाम देने के बजाय सजा दे दी गई….औऱ अब भी हाईकमान की प्राथमिकता सिद्धारमैया को सीएम बनाए रखने की है…..देखा जाए तो कांग्रेस हाईकमान का का फैसला एक सोची समझी रणनीति के तहत ही लिया गया है… कांतराज आयोग के आंकड़े OBC के पक्ष में बताए गए हैं… खासकर कुरूबा समुदाय के लिए, जिन्हें 12% आरक्षण दिया गया है… रिपोर्ट में मुसलमानों के लिए आरक्षण को 4% से बढ़ाकर 8% करने का भी प्रस्ताव है.. हालांकि, कुछ लोगों का मानना है कि यह भी काफी नहीं है… महा ओकोटा नाम का एक संगठन शोषित OBC, पिछड़े वर्गों और अल्पसंख्यकों का प्रतिनिधित्व करता है। कैबिनेट ने इस काम को पूरा करने के लिए 90 दिनों का समय तय किया है। BC आयोग के अध्यक्ष मधुसूदन आर. नाइक ने कहा कि प्रारंभिक काम शुरू हो चुका है….संक्षेप में समझें तो कर्नाटक में सियासत के साथ जाति जनगणना एक विवादास्पद मुद्दा बन गया है..जो थोड़े समय के लिए शांत कर लिया गया है…लेकिन OBC समुदाय को डर है कि उन्हें भारी नुकसान होगा… वहीं, लिंगायत और वोक्कालिंगा समुदाय जनगणना को फिर से कराना चाहते हैं।
राहुल गांधी की जाति जनगणना उनके ही राज्य में बनी मुसीबत
कर्नाटक में आलाकमान ने सरकार के सभी पक्षों को ध्यान में रखते हुए फैसला लिया है.. औऱ सिद्दारमैया की सरकार सरकार बने रहने का निरणय लिया गया…राहुल गांधी की जाति जनगणना उनके ही राज्य में मुसीबत बन गई है…. जनगणना के विरोध में राज्यव्यापी आंदोलन की धमकी दी है…पार्टी नहीं चाहती कि नेतृत्व परिवर्तन से सरकार की स्थिरता भंग हो और सरकार की छवि को नुकसान पहुंचे. इसके बजाय हाईकमान ने कैबिनेट फेरबदल के डीके समर्थकों को शांत करने की कोशिश की है. हालांकि डीके ने कैबिनेट फेरबदल का विरोध किया है, जिससे साफ है कि वह अपनी स्थिति को और मजबूत करना चाहते हैं….इधर सबसे बड़ा सवाल ये है कि आखिर कब तक डी के शिवकुमार और उनके समर्थक शांत रहेंगे….आखिर सीएम की कुर्सी का सवाल है…