मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग: आईए जानें इसका महत्व, क्यों कहते हैं इसे ‘दक्षिण का कैलाश’

16 जुलाई 2025: मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग, जो भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है।
जो भारत के आंध्र प्रदेश राज्य के कुरनूल जिले मे श्रीशैलम पर्वत पर स्थित हैl
इसे दक्षिण का कैलाश भी कहते हैं l यह ज्योतिर्लिंग कृष्णा नदी के किनारे स्थित हैl इस पवित्र स्थान की महिमा का वर्णन महाभारत शिव पुराण एवं पद्म पुराण जैसे ग्रंथों में भी मिलता है l यह ज्योतिर्लिंग सभी 12 ज्योतिर्लिंगों में सबसे अनोखा इसलिए भी है, क्योंकि यहां भगवान शिव एवं माता पार्वती दोनों ही विराजमान हैंl मल्लिकार्जुन 52 शक्तिपीठों में से एक है l शक्तिपीठ और ज्योतिर्लिंग एक ही जगह होने के कारण यह स्थान हिंदुओं के लिए अत्यंत पवित्र माना जाता है l

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति कैसे हुई:

श्री शिव महापुराण के चतुर्थ कोटी रूद्र संहिता के 15 वें अध्याय में, मल्लिकार्जुन नाम वाले अद्वितीय ज्योतिर्लिंग का वर्णन है l
इसके अनुसार भगवान शिव एवं माता पार्वती के दो पुत्र थे, कार्तिकेय एवं गणेश l एक बार माता-पिता ने निर्णय लिया, कि जो पुत्र पहले संपूर्ण पृथ्वी की परिक्रमा करेगा ,उसका विवाह पहले होगा l
कार्तिकेय तुरंत अपने वाहन मोर पर बैठकर निकल पड़े l
परंतु भगवान गणेश जी ने अपने बुद्धि का प्रयोग किया और अपने माता-पिता की तीन परिक्रमा करके कहा, मेरे लिए मेरे माता-पिता ही सारी पृथ्वी हैंl इस पर माता-पिता ने गणेश जी का विवाह रिद्धि-सिद्धि से कर दिया l
जब कार्तिकेय पृथ्वी की संपूर्ण परिक्रमा कर कैलाश पर वापस आए , उसे समय देवर्षि नारद ने वहां जाकर अपनी बुद्धि से उन्हें भ्रमित करते हुए , गणेश के विवाह आदि का सारा वृत्तांत सुनाया l
जिससे कार्तिकेय को बहुत क्रोध हुआ और अपने माता-पिता के मना करने पर भी वे उनको प्रणाम कर श्री शैलपर्वत पर चले गए l कार्तिकेय के वियोग से माता पार्वती अत्यंत दुखी थी l तब भगवान शिव ने देवताओं और ऋषियों को कुमार के पास भेजा l परंतु क्रोधित कार्तिकेय ने उनकी बात नहीं मानी , इससे शिव पार्वती अत्यंत दुखी हुए l और पुत्र के स्नेह वश स्वयं वहां गए , जहां कार्तिकेय रहते थे l किंतु कार्तिकेय को जब इसका पता चला , तो वह उस पर्वत से तीन योजन दूर चले गएl
ऐसी कथा है कि इस प्रकार पुत्र के चले जाने के पश्चात शिव पार्वती दोनों वहीं ज्योति रूप धारण करके विराजमान हो गए l
पुत्र के स्नेह से व्याकुल शिव तथा पार्वती प्रत्येक पर्व पर वहां जाते हैं l अमावस्या के दिन साक्षात शिव वहां जाते हैं ,तथा पूर्णमासी के दिन पार्वती वहां निश्चित रूप से जाती हैं l इस दिन से मल्लिका अर्थात पार्वती और अर्जुन यानी शिव का एक रूप मल्लिकार्जुन नामक
अद्वितीय शिवलिंग तीनों लोकों में प्रसिद्ध हुआ l

मंदिर की वास्तुकला है अदभुत!

यह मंदिर द्रविड़ शैली की वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है l इस मंदिर में ऊंचे गोपुरम हैंl इसकी भव्य नक्काशी और दीवारों पर बने सुंदर भित्ति चित्रों से इसकी प्राचीनता और धार्मिक महत्व का पता चलता हैl कुल 2 हेक्टेयर क्षेत्र में फैले इस मंदिर में चार प्रवेश द्वार हैं l इन्हें ही गोपुरम कहा जाता है l परिसर में कई हाल है, जिनमें मुख्य मंडप विजय नगर काल के समय में बनाया गया था l मंदिर परिसर में नादिकेश्वर के विशाल मूर्ति है l मंदिर में एक सहस्त्र लिंग स्थापित है ,ऐसा माना जाता है कि इसे भगवान राम ने बनवाया था l
मंदिर का निर्माण कई राजवंशों के समय में हुआ जिनमें सातवाहन, विजयनगर और रेड्डी राजाओं का उल्लेखनीय योगदान है l मंदिर की ऊंचाई लगभग 183 मीटर है परिसर की दीवारें 8.5 मी ऊंची है l यह मंदिर अद्वितीय नक्काशी और भारतीय शिल्पकला का अनुपम उदाहरण है l यह मंदिर शक्ति और शैव दोनों मतों के लिए पवित्र स्थान माना जाता है l

कैसे पहुंचे

मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग मंदिर का निकटतम रेलवे स्टेशन मारकपुर है l जो यहां से लगभग 84 किलोमीटर की दूरी पर हैl हवाई मार्ग से आने वालों के लिए कुरनूल हवाई अड्डा और हैदराबाद का राजीव गांधी अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा हैl श्रीशैलम से इनकी दूरी क्रमशः 190 किलोमीटर और 197 किलोमीटर हैl

ऐसा माना जाता है कि जो भी मनुष्य इस शिवलिंग का दर्शन करता है, वह सभी पापों से मुक्त हो जाता है l और सभी मनोरथों को प्राप्त कर लेता है l यह एक मात्र ऐसा ज्योतिर्लिंग है जहां शिव और शक्ति दोनों की उपासना होती है l

हर हर महादेव l

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