नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री कार्यकाल का विश्लेषण. जटिल चुनौतियों और उपलब्धियों का मिश्रण

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का कार्यकाल भारत के राजनीतिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय रहा है. उनके नेतृत्व में पिछले दशक में देश ने कई बड़े बदलाव देखे, जिनका आकलन करना आसान नहीं है. आर्थिक सुधारों से लेकर सामाजिक नीतियों और विदेशी कूटनीति तक, उनकी सरकार ने कई क्षेत्रों में कदम उठाए, जो समर्थकों और आलोचकों के बीच बहस का विषय बने हुए हैं. यह मूल्यांकन न केवल उनकी नीतियों की सफलता पर निर्भर करता है, बल्कि उन जटिल चुनौतियों पर भी, जिनका सामना देश ने इस दौरान किया.

मोदी सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धियों में आर्थिक क्षेत्र में किए गए सुधार शामिल हैं. जीएसटी लागू करना और डिजिटल इंडिया जैसी पहल ने भारत की अर्थव्यवस्था को नई दिशा दी. स्वच्छ भारत अभियान और आयुष्मान भारत जैसी योजनाओं ने सामाजिक कल्याण के क्षेत्र में प्रभाव डाला. इसके अलावा आत्मनिर्भर भारत और मेक इन इंडिया जैसे कार्यक्रमों ने स्वदेशी उत्पादन को बढ़ावा देने की कोशिश की. विदेश नीति में भी भारत ने इस दौरान वैश्विक मंच पर अपनी स्थिति मजबूत की, जिसका श्रेय मोदी की सक्रिय कूटनीति को दिया जाता है.

हालांकि इन उपलब्धियों के बावजूद मोदी सरकार को कई मोर्चों पर आलोचना का सामना करना पड़ा. नोटबंदी और जीएसटी के शुरुआती दौर में छोटे कारोबारियों को हुई परेशानी को लेकर सवाल उठे. बेरोजगारी और कृषि संकट जैसे मुद्दों ने भी सरकार की नीतियों पर बहस छेड़ी. सामाजिक ध्रुवीकरण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर कुछ वर्गों ने चिंता जताई. इसके अलावा कोविड-19 महामारी के दौरान स्वास्थ्य ढांचे की कमियां भी उजागर हुईं, जिसने सरकार की तैयारियों पर सवाल खड़े किए.

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मोदी का नेतृत्व एक मजबूत छवि और निर्णायक शैली पर आधारित रहा है, जिसने उन्हें जनता के बड़े वर्ग का समर्थन दिलाया. उनकी सरकार ने कई ऐतिहासिक फैसले लिए, जैसे जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाना और नागरिकता संशोधन कानून लागू करना, जो समर्थकों के लिए साहसिक कदम थे, लेकिन आलोचकों ने इन्हें विवादास्पद माना. सोशल मीडिया पर भी मोदी के कार्यकाल को लेकर लगातार चर्चा होती रही, जहां कुछ लोग उनकी नीतियों को क्रांतिकारी बताते हैं, तो कुछ इसे अपर्याप्त मानते हैं.

मोदी के कार्यकाल का आकलन एक जटिल प्रक्रिया है, क्योंकि यह केवल आंकड़ों या नीतियों तक सीमित नहीं है. यह भारत जैसे विविध और जटिल देश की सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक गतिशीलता को समझने पर भी निर्भर करता है. उनके समर्थक जहां उनके विजन को भारत को वैश्विक शक्ति बनाने की दिशा में कदम मानते हैं, वहीं आलोचक समावेशिता और समान विकास पर और ध्यान देने की जरूरत बताते हैं. इस कार्यकाल का अंतिम मूल्यांकन समय और इतिहास के हाथों में है, लेकिन यह स्पष्ट है कि यह दौर भारत के लिए परिवर्तनकारी रहा है.

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