
पूजा विधि, और महत्व
नवरात्रि के सातवें दिन माता दुर्गा के कालरात्रि स्वरूप की उपासना की जाती है। कालरात्रि का अर्थ होता है ‘काल’ (समय या मृत्यु) की भी रात्रि, अर्थात वह शक्ति जो समय और मृत्यु को भी नियंत्रित कर सकती है। देवी कालरात्रि अपने उग्र स्वरूप के लिए जानी जाती हैं और दुष्ट शक्तियों का नाश कर भक्तों को निर्भय बनाती हैं। उनका रंग कृष्ण (काला) होता है, और वे विकराल रूप में बिखरे बालों और अट्टहास करती हुई दिखाई देती हैं।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक समय दैत्यराज रक्तबीज अपने अत्याचारों से देवताओं और ऋषियों को अत्यधिक कष्ट पहुंचा रहा था। उसकी शक्ति का रहस्य यह था कि जब भी उसके रक्त की एक बूंद भूमि पर गिरती, तो उससे नया रक्तबीज उत्पन्न हो जाता। जब सभी देवता उसकी शक्ति के आगे असहाय हो गए, तब माँ दुर्गा ने अपने विकराल रूप ‘कालरात्रि’ को प्रकट किया। माता कालरात्रि ने अपने तीव्र प्रहारों से रक्तबीज को घायल किया और जब उसका रक्त बहा, तो उन्होंने अपनी विशाल जिह्वा से उसे पान कर लिया। इस प्रकार, कोई नया रक्तबीज उत्पन्न नहीं हो सका और अंततः उसका संहार हो गया। इसी कारण माता कालरात्रि को भय नाशिनी और दुष्ट शक्तियों का विनाश करने वाली कहा जाता है।
माता कालरात्रि का स्वरूप अत्यंत भयानक और उग्र है, किंतु उनका यह रूप केवल दुष्टों के लिए भयावह होता है। वे अपने भक्तों को सुरक्षा और निर्भयता प्रदान करती हैं। उनका शरीर कृष्ण वर्ण का है, वे बिखरे हुए केशों के साथ प्रकट होती हैं, उनके तीन नेत्र हैं, जिनसे बिजली की तरह चमक निकलती है। उनका वाहन गर्दभ (गधा) है। उनके हाथों में वरमुद्रा, अभयमुद्रा, जपमाला और खड्ग होती है। वे लोहे के आभूषण धारण किए हुए हैं और उनका स्वरूप अत्यंत प्रभावशाली है।
नवरात्रि के सातवें दिन माता कालरात्रि की पूजा विशेष विधि से की जाती है। प्रातःकाल स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। पूजन स्थल पर माता कालरात्रि की मूर्ति या चित्र स्थापित करें और लाल फूल, चंदन, अक्षत, धूप, दीप और नैवेद्य अर्पित करें। माता को गुड़ और तिल का भोग लगाएं। दुर्गा सप्तशती के सप्तम अध्याय या कालरात्रि स्तोत्र का पाठ करें। माता से भय, शत्रुओं और नकारात्मक ऊर्जा से रक्षा की प्रार्थना करें। अंत में आरती करें और प्रसाद वितरण करें।
माता कालरात्रि की पूजा करने से भक्तों को निर्भयता, साहस और आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त होती है। यह दिन तंत्र और मंत्र साधनाओं के लिए भी विशेष होता है। उनकी कृपा से सभी प्रकार की बुरी शक्तियों, बाधाओं, भूत-प्रेत और शत्रुओं से मुक्ति मिलती है। योगशास्त्र के अनुसार, माता कालरात्रि का संबंध ‘सहस्रार चक्र’ से होता है। यह चक्र हमारे सिर के शीर्ष पर स्थित होता है और आत्मज्ञान तथा मोक्ष का केंद्र माना जाता है। जब यह चक्र सक्रिय होता है, तब व्यक्ति में असीम आध्यात्मिक शक्ति का संचार होता है और वह भय तथा मोह से मुक्त हो जाता है। माता कालरात्रि की उपासना करने से सहस्रार चक्र संतुलित होता है, जिससे साधक को दिव्य अनुभव होते हैं।
माता कालरात्रि का स्वरूप अत्यंत शक्तिशाली और उग्र है, किंतु वे अपने भक्तों के लिए दयालु और मंगलकारी हैं। नवरात्रि के सातवें दिन उनकी आराधना करने से भय, शत्रु और नकारात्मक शक्तियों से मुक्ति मिलती है। साथ ही, यह साधना सहस्रार चक्र को जागृत कर आत्मज्ञान और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करती है। अतः, जो भी श्रद्धालु इस दिन माता कालरात्रि की पूजा सच्चे मन से करता है, उसे बल, बुद्धि और विजय की प्राप्ति होती है।