सोमनाथ ज्योतिर्लिंग- भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक! जाने मंदिर का इतिहास और मंदिर से जुड़ी मान्यताएं

खबर प्रधान डेस्क- सोमनाथ मंदिर का महत्व न केवल एक धार्मिक स्थल के रूप में है बल्कि एक भारतीय संस्कृति और इतिहास का भी एक महत्वपूर्ण प्रतीक है ।यह मंदिर तीन नदियों कपिला ,हिरण्य और सरस्वती के संगम पर स्थित है ,जिसे त्रिवेणी संगम भी कहा जाता है।

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग भारत के गुजरात राज्य में स्थित है l यह मंदिर सौराष्ट्र क्षेत्र के गिर- सोमनाथ जिले के प्रभास पाटन नामक स्थान पर स्थित है l जो अरब सागर तट पर स्थित एक प्राचीन तीर्थ स्थल हैl
सोमनाथ मंदिर को प्रथम ज्योतिर्लिंग के रूप में माना जाता है l यह शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से सबसे पवित्र माना जाता है l
इस मंदिर का इतिहास अत्यंत प्राचीन है और इसे कई बार विदेशी आक्रांताओं द्वारा नष्ट करने के प्रयास किए गए l

उत्पत्ति का वृतांत

श्री शिव महापुराण के अंतर्गत, चतुर्थ कोटी रूद्र संहिता में सोमनाथ के ज्योतिर्लिंग की उत्पत्ति का वर्णन 14 वें अध्याय में किया गया है l

इसके अनुसार महात्मा दक्ष ने अपनी सभी 27 कन्याओं का विवाह चंद्रमा से कर दिया l वे सभी चंद्रमा को वर के रूप में प्रकार अत्यंत प्रसन्न हुई , और चंद्रमा भी उन्हें प्रकार निरंतर शोभित होते थे l इन सभी पत्नियों में जो रोहिणी नामक थी वह चंद्रमा को विशेष प्रिय थी l
तब अन्य कन्याएं दुखी होकर पिता के पास गई और अपना दुख बताया l इससे पिता को बहुत दुख हुआ उन्होंने चंद्रमा के पास जाकर कहा- हे चंद्रमा! आप उत्तम कुल के वंशज हैं l आपका सभी आश्रितों के प्रति समान व्यवहार ही उचित है l किंतु यह विषम व्यवहार क्यों है?
कृपया ऐसा व्यवहार ना करें l इस तरह प्रार्थना करके वे चले गए परंतु चंद्रमा के व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं आया l

वह सदैव रोहिणी में आसक्त रहते थे l तथा अन्य पत्नियों का मान नहीं करते थे l महात्मा दक्ष ने जब पुनः यह जाना तो वे अत्यंत क्रोधित हुए , और चंद्रमा को श्राप दे दिया , कि आप क्षय रोग से ग्रस्त हो जाए l इस तरह चंद्रमा उसी क्षण क्षय रोगी हो गए l उनके क्षीण होते ही हाहाकार मच गया सभी देवता एवं ऋषि ब्रह्मा जी के पास पहुंचे ,और उनसे इस समस्या से निकलने का उपाय पूछा l

तब ब्रह्मा जी ने कहा ,कि चंद्रमा कल्याणकारी प्रभास क्षेत्र में जाए, और वहां मृत्युंजय विधान से भगवान शिव की आराधना करें l शिवलिंग को स्थापित करके प्रतिदिन तपस्या करें l इससे शिव प्रसन्न होंगे और उसे क्षय रोग से मुक्त कर देंगे l तत्पश्चात चंद्रमा ने निरंतर 6 माह तक तप किया और मृत्युंजय मंत्र से वृषभध्वज का पूजन किया l उन्होंने 10 करोड़ की संख्या में मृत्युंजय मंत्र का जाप किया l

तब भक्त वत्सल भगवान शिव प्रसन्न हुए और चंद्रमा से वर मांगने को कहा l
चंद्रमा ने भगवान शिव से प्रार्थना की, हे देव! मेरे शरीर के क्षय रोग को दूर कीजिए l

शिवजी बोले, हे चंद्र! एक पक्ष में तुम्हारी कला प्रतिदिन क्षीण होगी और पुनः दूसरे पक्ष में क्रमशः बढ़ेगी l ऐसा वरदान प्राप्त कर चंद्रमा को अत्यंत हर्ष हुआ l

अन्य सभी ऋषि तथा देवताओं ने भी चंद्रमा को आशीर्वाद दिया एवं शिवजी से प्रार्थना की, हे देव! आप पार्वती सहित यहां स्थिर हो जाइए l तब देवताओं पर प्रसन्न भगवान शिव उस क्षेत्र के महत्व में वर्धन तथा चंद्रमा के यश विस्तार के लिए, वही उन्हीं के नाम पर, सोमेश्वर नाम से स्थित हुए l
वहीं पर देवताओं ने चंद्रमा के नाम से चंद्र कुंड की स्थापना की जहां शिव एवं ब्रह्मा का निवास माना जाता है l

भगवान सोमेश्वर का पूजन करने से वे क्षय, कुष्ठ आदि रोगों का विनाश करते हैं l चंद्रकुंड में स्नान करने से सभी पापों का नाश होता है l उस कुंड में 6 माह तक निरंतर स्नान करने से क्षय आदि असाध्य रोग नष्ट होते हैं l

प्रभास तीर्थ की परिक्रमा करने से पृथ्वी की परिक्रमा का फल मिलता है l और अंत में स्वर्ग की प्राप्ति होती है l

सोमनाथ मंदिर के वास्तु शैल

सोमनाथ मंदिर की वास्तुकला अत्यंत भव्य है l यह मंदिर चालुक्य शैली में बना है l इसके नक्काशीदार स्तंभ, विशाल शिखर और जटिल शिल्प कला अद्वितीय है l मंदिर का शिखर लगभग 155 फीट ऊंचा है lऔर इसके शीर्ष पर सोने का कलश स्थापित है l
यह मंदिर भूमध्य रेखा और कर्क रेखा के समीप स्थित है l जिससे यहां सूर्य की किरणें सीधे गर्भ ग्रह में प्रवेश करती है l मंदिर के पीछे एक स्तंभ है जिसे “बाण स्तंभ” कहा जाता है l इस पर लिखा है, कि अरब सागर की दिशा में हजारों किलोमीटर तक कोई भी भूमि नहीं है l यानी मंदिर के इस दिशा में सीधी रेखा में कोई भी रुकावट नहीं आती lयह न सिर्फ धार्मिक आस्था का केंद्र है बल्कि भारतीय स्थापत्य कला की गौरवशाली विरासत को भी दर्शाता है l

मंदिर का इतिहास

सोमनाथ मंदिर पर इतिहास में कई बार मुसलमान आक्रांताओं के आक्रमण हुए l और यह मंदिर हर बार पुनः बनाया गया l कुल 17 बार मंदिर को तोड़ा गया l जिसमें से कुछ प्रमुख घटनाएं यह हैं l
1.. 1025 ईस्वी में महमूद गजनवी ने मंदिर पर हमला कर उसे लूटा और ध्वस्त किया l कहा जाता है ,कि वह 20 लाख स्वर्ण मुद्राएं और बेशकीमती गहने लूट कर ले गया l

2… 1295 ईस्वी में अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति उलूग खान द्वारा इस मंदिर को निशाना बनाया गया lमूर्तियों को तोड़ा और मंदिर को फिर से ध्वस्त कर दिया गया l

3.. 1395 ईस्वी में मुजफ्फर शाह द्वारा एक और विध्वंस सोमनाथ मंदिर पर हुआ l साथ ही अन्य धार्मिक स्थलों को भी निशाना बनाया गया l

4.. 1451 ईस्वी में महमूद बेगड़ा ने फिर इसे ध्वस्त किया l और मस्जिद बनाने की कोशिश की l

5.. 1665 ईस्वी में औरंगजेब ने पुनः इस तोड़ा l और पूरी तरह मिटाने का आदेश दियाl कालांतर में कई बार स्थानीय हिंदू शासको ने मंदिर का पुनर्निर्माण किया l 1951 में भारत की स्वतंत्रता के पश्चात, सरदार वल्लभभाई पटेल के प्रयासों से सोमनाथ मंदिर का वर्तमान भव्य रूप में पुनर्निर्माण हुआl

यह मंदिर न केवल आस्था का केंद्र है बल्कि यह भारतीय हिंदू के इतिहास धैर्य और पुनर्निर्माण की शक्ति का भी प्रतीक है।

हर हर महादेव

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