
10 जुलाई 2025: हिंदू धर्म में कावड़ यात्रा को बहुत ही पवित्र और महत्वपूर्ण माना जाता है। यह यात्रा बहुत कठिन भी होती है। इस दौरान कांवडिये हरिद्वार से गंगाजल लाकर पैदल यात्रा करते हैं। और सावन के महीने में शिवरात्रि पर अपने-अपने क्षेत्र के शिवालयों में शिवलिंग का अभिषेक करते हैं।
क्या होता है कावड़
कांवड़ का अर्थ है एक बांस की बनी हुई रचना ,जिसके दोनों सिरों पर जल से भरे हुए पात्र या मटके बंधे होते हैं। इसे कांवडिये अपने कंधे पर रखकर यात्रा करते हैं । इस पात्र में गंगाजल भरकर उसे शिवलिंग पर चढ़ाते हैं। यह यात्रा भगवान शिव के भक्तों द्वारा सावन के महीने में की जाती है ।
कावड़ यात्रा के नियम
कावड़ यात्रा के दौरान कई कठोर नियम और अनुशासन का पालन किया जाता है । जैसे की नंगे पैर चलना ,सात्विक भोजन करना और कावड़ को जमीन पर नहीं रखना।
कावड़ यात्रा को भगवान शिव की भक्ति और आशीर्वाद प्राप्त करने का एक तरीका माना जाता है।
और सावन का महीना भगवान शिव को समर्पित होता है जिसमें कांवड़ यात्रा का विशेष महत्व होता है ।
क्यों की जाती है कांवरिया यात्रा
हिंदू पुराणों में कावड़ यात्रा का संबंध
समुद्र मंथन से है । समुद्र मंथन में अमृत से पहले विष निकला । और दुनिया उसकी गर्मी से जलने लगी उस विष को शिव जी ने अपने अंदर समाहित कर लिया । किंतु इस विष को लेने के बाद वह नकारात्मक ऊर्जा से पीड़ित होने लगे।
कावड़ यात्रा की शुरुआत किसने की
भगवान शिव के जलाभिषेक के लिए पवित्र गंगाजल लाने के लिए कावड़ यात्रा की शुरुआत की गई ।यह माना जाता है कि रावण ने कावड़ यात्रा की शुरुआत की थी ।इसलिए रावण को पहले कांवडिया कहा जाता है ।
कुछ मान्यताओं के अनुसार भगवान राम पहले कांवडियें थे जिन्होंने बिहार के सुल्तानगंज से कांवड़ में गंगाजल भरकर बाबा धाम में शिवलिंग का शिव जलाभिषेक किया था ।
कुछ मान्यताओं के अनुसार श्रवण कुमार ने पहली बार कावड़ यात्रा की थी। माता-पिता की इच्छा पूरी करने के लिए श्रवण कुमार माता-पिता को कावड़ में बैठाकर हरिद्वार ले गए और उन्हें गंगा स्नान कराया । वापसी में वह अपने साथ गंगाजल भी ले गए इसे भी कावड़ यात्रा की शुरुआत माना जाता है।
भगवान परशुराम ने हिंडन नदी के किनारे एक मंदिर की स्थापना की थी। उन्होंने कावड़ द्वारा ले गए गंगाजल से शिव जी का अभिषेक किया था और पहले कावड़ चढ़ाई थी तभी से कावड़ यात्रा चली आ रही है ।