
नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने OTT बनाम थिएटर बहस में रखा बड़ा पक्ष
बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने सिनेमाघरों की घटती भीड़ और OTT प्लेटफॉर्म्स की बढ़ती लोकप्रियता पर खुलकर अपनी राय रखी है। उनका मानना है कि सिनेमाघरों में टिकटों की ऊंची कीमतें दर्शकों को सिनेमाहॉल से दूर कर रही हैं, और अगर सिनेमाघरों को फिर से गुलजार करना है, तो टिकटों को सस्ता करना होगा। यह बयान ऐसे समय में आया है, जब OTT प्लेटफॉर्म्स सस्ते और सुविधाजनक मनोरंजन के दम पर दर्शकों का पसंदीदा विकल्प बनते जा रहे हैं।
OTT की चमक, थिएटर की चुनौती
पिछले कुछ सालों में नेटफ्लिक्स, अमेजन प्राइम, डिज्नी+ हॉटस्टार जैसे OTT प्लेटफॉर्म्स ने दर्शकों के मनोरंजन के तरीके को पूरी तरह बदल दिया है। घर बैठे सस्ते दामों पर फिल्में, वेब सीरीज और शोज उपलब्ध होने के कारण लोग सिनेमाघरों की ओर कम रुख कर रहे हैं। नवाजुद्दीन सिद्दीकी ने इस मुद्दे पर कहा, “OTT ने लोगों को घर पर ही सिनेमा का अनुभव दे दिया है। दूसरी ओर, सिनेमाघरों में एक परिवार के लिए टिकट, पॉपकॉर्न और पार्किंग का खर्च 2000-3000 रुपये तक पहुंच जाता है। ऐसे में मध्यमवर्गीय परिवार OTT को ही चुनता है।”
उन्होंने जोर देकर कहा कि अगर सिनेमाघरों को अपनी खोई हुई रौनक वापस चाहिए, तो टिकटों की कीमतें 100-150 रुपये के दायरे में लानी होंगी। “सस्ती टिकटें ही पब्लिक को सिनेमाहॉल की ओर खींचेंगी। लोग बड़े पर्दे का जादू फिर से महसूस करना चाहते हैं, लेकिन इसके लिए उनकी जेब पर बोझ नहीं पड़ना चाहिए,” नवाज ने एक हालिया इंटरव्यू में कहा।
सिनेमाघरों की महंगी टिकटों का बोझ
आज के दौर में मल्टीप्लेक्स में एक टिकट की कीमत 300 रुपये से लेकर 1000 रुपये तक हो सकती है। अगर कोई परिवार चार लोगों के साथ फिल्म देखने जाता है, तो टिकटों के साथ खाने-पीने का खर्च मिलाकर यह एक महंगा अनुभव बन जाता है। दूसरी ओर, OTT प्लेटफॉर्म्स पर 200-300 रुपये के मासिक सब्सक्रिप्शन में पूरा परिवार अनलिमिटेड कंटेंट का मजा ले सकता है। यही वजह है कि छोटे शहरों और मध्यमवर्गीय परिवारों में OTT का चलन तेजी से बढ़ रहा है।
नवाजुद्दीन ने यह भी बताया कि सिनेमाघरों में छोटे बजट की फिल्मों को मौका नहीं मिलता, क्योंकि मल्टीप्लेक्स बड़े प्रोडक्शन हाउस की फिल्मों को प्राथमिकता देते हैं। “छोटी फिल्में, जो कहानी के दम पर चलती हैं, उन्हें सिनेमाघरों में जगह नहीं मिलती। OTT ने ऐसी फिल्मों को एक नया मंच दिया है, और यही उनकी ताकत है,” उन्होंने कहा।
सिनेमाघरों का भविष्य: क्या है रास्ता?
नवाजुद्दीन का मानना है कि सिनेमाघरों को बचाने के लिए न केवल टिकटों की कीमतें कम करनी होंगी, बल्कि दर्शकों को कुछ नया और अनोखा अनुभव भी देना होगा। उन्होंने सुझाव दिया कि सिनेमाघरों में इंटरैक्टिव स्क्रीनिंग, लाइव Q&A सेशन, या थीम बेस्ड शोज जैसे प्रयोग किए जा सकते हैं। इसके अलावा, सिंगल-स्क्रीन थिएटरों को फिर से मजबूत करने की जरूरत है, जो छोटे शहरों में सस्ते दामों पर फिल्में दिखा सकते हैं।
उन्होंने यह भी कहा कि निर्माताओं को ऐसी फिल्में बनानी चाहिए, जो बड़े पर्दे के लिए खास हों। “ऐसी फिल्में, जिनका मजा सिर्फ सिनेमाहॉल में ही आ सकता है, जैसे कि भव्य एक्शन, विजुअल इफेक्ट्स या इमर्सिव साउंड वाली फिल्में, दर्शकों को थिएटर तक खींच सकती हैं,” नवाज ने जोड़ा।
OTT और थिएटर: साथ-साथ चलने की जरूरत
नवाजुद्दीन ने यह भी स्पष्ट किया कि OTT और सिनेमाघरों को एक-दूसरे का दुश्मन मानने की बजाय साथ मिलकर काम करना चाहिए। “दोनों का अपना अलग महत्व है। OTT ने नई कहानियों और नए टैलेंट को मौका दिया है, जबकि सिनेमाघर सामूहिक अनुभव और सिनेमा के जादू का प्रतीक हैं। दोनों को अपनी ताकत का इस्तेमाल करके दर्शकों को लुभाना चाहिए,” उन्होंने कहा।
दर्शकों की राय
इस बहस में दर्शकों की राय भी अहम है। मुंबई के एक कॉलेज छात्र राहुल ने कहा, “मैं OTT पर हर हफ्ते नई फिल्में और सीरीज देख लेता हूं, लेकिन थिएटर में सिर्फ तब जाता हूं, जब कोई बड़ी फिल्म जैसे ‘पठान’ या ‘जवान’ रिलीज होती है। अगर टिकटें सस्ती हों, तो मैं हर हफ्ते थिएटर जाऊंगा।” वहीं, दिल्ली की एक गृहिणी शालिनी ने बताया, “OTT पर मैं अपने बच्चों के साथ आराम से फिल्म देख सकती हूं। थिएटर में इतना खर्चा और समय लगता है कि हम साल में सिर्फ एक-दो बार ही जाते हैं।”