
‘हमारा स्थान कहां?’ सनातन धर्म पर उठाए सवाल
राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह को लेकर देश में जहां उत्साह का माहौल है, वहीं इस आयोजन ने एक नया विवाद भी खड़ा कर दिया है। ज्योतिष्पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने इस समारोह पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने सवाल उठाया कि अगर सनातन धर्म के सर्वोच्च गुरुओं को इस आयोजन में शामिल नहीं किया गया, तो फिर “शंकराचार्य का स्थान क्या है?” उनके इस बयान ने न केवल सियासी गलियारों में हलचल मचाई है, बल्कि सोशल मीडिया पर भी एक नई बहस छेड़ दी है। आइए, इस पूरे मामले को गहराई से समझते हैं और जानते हैं कि शंकराचार्य के इस गुस्से के पीछे की कहानी क्या है।
प्राण प्रतिष्ठा: उत्सव या विवाद?
22 जनवरी 2024 को अयोध्या में राम मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा का भव्य आयोजन हुआ। इस समारोह में देश-विदेश के गणमान्य लोग शामिल हुए, और इसे एक ऐतिहासिक क्षण के रूप में देखा गया। लेकिन इस उत्सव के बीच शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने आयोजन की प्रक्रिया और व्यवस्था पर सवाल उठाए। उन्होंने दावा किया कि प्राण प्रतिष्ठा अधूरे मंदिर में की गई, जो सनातन धर्म के शास्त्रों के खिलाफ है।
उनका कहना था, “शास्त्रों में साफ है कि अधूरे मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा नहीं हो सकती। फिर यह जल्दबाजी क्यों? हमें बताएं कि सनातन धर्म में शंकराचार्य की क्या भूमिका है?” उनके इस बयान ने आयोजन की वैधता और शास्त्रीय नियमों पर सवाल खड़े कर दिए। शंकराचार्य ने यह भी कहा कि उन्हें इस समारोह में निमंत्रण नहीं मिला, और अगर मिलता भी, तो वह शामिल नहीं होते, क्योंकि यह आयोजन शास्त्रों के अनुरूप नहीं था।
शंकराचार्य की नाराजगी: धर्म या सियासत?
शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद के इस बयान ने सनातन धर्म के अनुयायियों के बीच एक नई बहस छेड़ दी है। कुछ लोग इसे शास्त्रों की रक्षा के लिए उठाया गया एक साहसिक कदम मान रहे हैं, तो कुछ इसे सियासी चाल के रूप में देख रहे हैं। सोशल मीडिया पर एक यूजर ने लिखा, “शंकराचार्य जी ने सही सवाल उठाया। धर्म को सियासत का हथियार नहीं बनाना चाहिए।” वहीं, एक अन्य यूजर ने टिप्पणी की, “यह सिर्फ सियासी बयान है। राम मंदिर के खिलाफ बोलकर वह चर्चा में आना चाहते हैं।”
शंकराचार्य ने अपने बयान में यह भी कहा कि सनातन धर्म में शंकराचार्य का स्थान सर्वोच्च है, और उनकी अनदेखी करना धर्म के साथ खिलवाड़ है। उन्होंने सवाल उठाया, “जब हमारी कोई जरूरत नहीं, तो फिर हमें शंकराचार्य क्यों बनाया गया? हमारे धर्म में हमारा स्थान क्या है?” यह बयान साफ तौर पर इस आयोजन के आयोजकों और सरकार पर निशाना साधता है।
सियासी रंग: बीजेपी पर निशाना?
शंकराचार्य के इस बयान को कई लोग सियासी रंग से जोड़कर देख रहे हैं। कुछ का मानना है कि यह बयान भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और केंद्र सरकार के खिलाफ एक सुनियोजित हमला है। एक सोशल मीडिया पोस्ट में दावा किया गया कि बीजेपी ने लोकसभा चुनाव से पहले प्राण प्रतिष्ठा का आयोजन कर सियासी फायदा उठाने की कोशिश की। शंकराचार्य ने भी अपने एक साक्षात्कार में कहा कि यह आयोजन सनातन धर्म के नियमों के खिलाफ था और इसे जल्दबाजी में किया गया।
हालांकि, बीजेपी समर्थकों ने इस बयान की आलोचना करते हुए कहा कि शंकराचार्य का यह रुख राम मंदिर आंदोलन के ऐतिहासिक महत्व को कमजोर करता है। एक यूजर ने लिखा, “राम मंदिर सैकड़ों सालों के संघर्ष का परिणाम है। शंकराचार्य को इस खुशी में शामिल होना चाहिए था, न कि विवाद खड़ा करना चाहिए।”
सनातन धर्म और शास्त्रों का सवाल
शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने अपने बयान में शास्त्रों का हवाला देते हुए कहा कि प्राण प्रतिष्ठा के लिए मंदिर का पूर्ण निर्माण जरूरी है। उनके मुताबिक, अधूरे मंदिर में यह अनुष्ठान करना शास्त्रों का उल्लंघन है। उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि इस आयोजन में सनातन धर्म के सर्वोच्च गुरुओं को क्यों नजरअंदाज किया गया।
यह पहली बार नहीं है जब शंकराचार्य ने इस मुद्दे पर अपनी बात रखी हो। इससे पहले भी उन्होंने कई मंचों पर प्राण प्रतिष्ठा के समय और प्रक्रिया पर सवाल उठाए थे। उनके इस रुख को कुछ लोग सनातन धर्म की रक्षा के लिए जरूरी मान रहे हैं, तो कुछ इसे धार्मिक और सियासी विभाजन की कोशिश करार दे रहे हैं।
सोशल मीडिया पर तीखी बहस
शंकराचार्य के इस बयान ने सोशल मीडिया पर तीखी बहस छेड़ दी है। #RamMandir, #Shankaracharya और #PranPratishtha जैसे हैशटैग ट्रेंड करने लगे। कुछ लोग शंकराचार्य के समर्थन में उतरे और उनके बयान को सनातन धर्म की रक्षा का प्रयास बताया। एक यूजर ने लिखा, “शंकराचार्य जी ने सही कहा। धर्म को सियासत से दूर रखना चाहिए।” वहीं, कुछ लोगों ने इसे अनावश्यक विवाद करार दिया। एक यूजर ने टिप्पणी की, “राम मंदिर का निर्माण हर हिंदू का सपना था। अब जब वह सच हो रहा है, तो ऐसे बयान निराश करते हैं।”
भविष्य की संभावनाएं
शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद का यह बयान न केवल धार्मिक, बल्कि सियासी दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। यह विवाद बीजेपी और विपक्षी दलों के बीच एक नया सियासी मुद्दा बन सकता है। जहां बीजेपी इस आयोजन को अपनी उपलब्धि के रूप में पेश कर रही है, वहीं विपक्ष इसे धार्मिक भावनाओं के दुरुपयोग के रूप में देख सकता है।
इसके अलावा, यह बयान सनातन धर्म के अनुयायियों के बीच भी एक नई बहस को जन्म दे सकता है। क्या शास्त्रों का पालन हर हाल में जरूरी है, या फिर सामाजिक और सियासी परिस्थितियों को ध्यान में रखकर कुछ बदलाव स्वीकार किए जा सकते हैं? यह सवाल न केवल धार्मिक विद्वानों, बल्कि आम जनता के बीच भी चर्चा का विषय बन गया है।
धर्म और सियासत का टकराव
शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद का यह बयान राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह को एक नए विवाद में ले आया है। यह न केवल सनातन धर्म के शास्त्रों और परंपराओं पर सवाल उठाता है, बल्कि धर्म और सियासत के बीच के टकराव को भी उजागर करता है। शंकराचार्य का यह सवाल कि “हमारा स्थान क्या है?” न केवल आयोजकों, बल्कि पूरे देश के सामने एक बड़ा सवाल खड़ा करता है। अब यह देखना बाकी है कि यह विवाद किस दिशा में जाता है और क्या यह सनातन धर्म के भविष्य को प्रभावित करेगा।