भगवान शिव के अनोखे श्रृंखला मंदिर- स्तंभेश्वर महादेव मंदिर: दिन में दो बार समुद्र में गायब होने वाला शिव मंदिर

19 जुलाई 2025: भारत भूमि पर शिवभक्तों के लिए अनेक रहस्यमयी और अद्भुत मंदिर हैं, लेकिन स्तंभेश्वर महादेव मंदिर एक ऐसा शिवधाम है जो अपनी प्राकृतिक विलक्षणता के कारण भक्तों और पर्यटकों दोनों के लिए आस्था और आश्चर्य का केंद्र है।

यह मंदिर दिन में दो बार समुद्र की लहरों में छिप जाता है और फिर पुनः प्रकट होता है। यह दृश्य न सिर्फ आध्यात्मिक है, बल्कि प्रकृति और ईश्वर की अद्भुत लीला का सजीव प्रमाण भी है।

मंदिर का स्थान और पहुँचने का मार्ग:

स्थान: कावी-कंबोई गाँव, जंभूसर तहसील, भरूच ज़िला, गुजरात

निकटतम शहर: वडोदरा (70 किमी)

निकटतम रेलवे स्टेशन: भरूच या वडोदरा

निकटतम हवाई अड्डा: वडोदरा एयरपोर्ट

यह मंदिर अरब सागर के किनारे स्थित है, और समुद्र की लहरें इसे दिन में दो बार पूरी तरह से ढक लेती हैं — ज्वार-भाटा (high tide) के समय।

पौराणिक कथा:

स्तंभेश्वर महादेव मंदिर का उल्लेख स्कंद पुराण में भी मिलता है।
कथा के अनुसार, जब भगवान कार्तिकेय ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का वध किया था, तब उनके मन में ग्लानि उत्पन्न हुई क्योंकि त्रिपुरासुर शिवभक्त था। इस पाप से मुक्ति के लिए ऋषियों ने उन्हें एक शिवलिंग की स्थापना करने का परामर्श दिया।

भगवान कार्तिकेय ने इस स्थान पर स्वयं शिवलिंग की स्थापना की। यह शिवलिंग ही आज स्तंभेश्वर महादेव के रूप में पूजित है।

मंदिर की विशेषताएँ:

यह मंदिर दुनिया के उन चंद मंदिरों में से एक है, जो ज्वार भाटा के समय समुद्र की लहरों में डूब जाता है।

भाटा (Low tide): मंदिर और शिवलिंग पूरी तरह से दिखाई देते हैं, भक्त दर्शन और पूजा कर सकते हैं।

ज्वार (High tide): मंदिर जल में डूब जाता है, और शिवलिंग अदृश्य हो जाता है।

यह दृश्य इतना मंत्रमुग्ध करने वाला होता है कि भक्त घंटों तक समुद्र की लहरों और शिवलिंग की यह लीला देखने के लिए रुक जाते हैं।

सरल और प्राकृतिक वास्तुकला:

मंदिर अत्यंत प्राचीन है और इसकी संरचना बेहद सादगीपूर्ण है।

मुख्य गर्भगृह में शिवलिंग स्थापित है, जिसके चारों ओर खुले आकाश के नीचे पूजन होता है।

प्राकृतिक तटरेखा से घिरा होने के कारण मंदिर का परिवेश अत्यंत शांत और आध्यात्मिक लगता है।

स्तंभेश्वर को “स्वयंभू शिवलिंग” माना जाता है।
यहाँ की पूजा विशेष रूप से उन लोगों के लिए की जाती है जो पितृ दोष, कर्म दोष, या आध्यात्मिक शुद्धि की कामना रखते हैं।

शिवभक्त मानते हैं कि इस स्थान पर पूजा करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है।

आवश्यक जानकारी:

दर्शन और पूजन समय:
भाटा के समय: जब समुद्र शांत होता है, तभी मंदिर में प्रवेश संभव होता है।

सुबह: 6:00 बजे से दोपहर तक

शाम: 4:00 बजे से सूर्यास्त तक (समय समुद्री लहरों पर निर्भर)

नोट: समुद्री ज्वार-भाटा का टाइम टेबल पहले से जानना आवश्यक है। लोकल लोग और मंदिर प्रशासन आपको सही समय की जानकारी देते हैं।

पूजा विधियाँ:

जल, दूध, बेलपत्र, धूप-दीप, पुष्प आदि से अभिषेक किया जाता है।

यहाँ विशेष रूप से रुद्राभिषेक, महामृत्युंजय जाप और शिव तांडव स्तोत्र का पाठ किया जाता है।

वार्षिक उत्सव और कांवड़ यात्रा:

हालाँकि स्तंभेश्वर में वैसी पारंपरिक कांवड़ यात्रा नहीं होती जैसी हरिद्वार या वैद्यनाथ धाम में देखी जाती है, फिर भी श्रावण मास में यहाँ विशेष भीड़ होती है। श्रद्धालु दूर-दूर से जल लेकर आते हैं और शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं।

महाशिवरात्रि:

इस दिन यहाँ विशेष रुद्राभिषेक, भजन-संध्या और रात्रि जागरण का आयोजन होता है।

श्रावण सोमवार:
हर सोमवार को सैकड़ों भक्त यहाँ पूजन हेतु पहुँचते हैं।

श्रद्धालुओं का मानना है कि इस मंदिर में शिवलिंग के दर्शन से मन की शांति मिलती है और बुरे विचार दूर हो जाते हैं।

कुछ भक्तों का अनुभव है कि यहाँ की प्राकृतिक लहरों की ध्वनि और शिवलिंग की छिपन-उद्भवन की प्रक्रिया उन्हें ईश्वर की सजीवता का अहसास कराती है।

स्थानीय लोगों का मानना है कि यहाँ समुद्र स्वयं भगवान शिव का अभिषेक करता है।

कैसे पहुँचें

सड़क मार्ग:
वडोदरा और भरूच से सड़क मार्ग द्वारा कावी-कंबोई गाँव आसानी से पहुँचा जा सकता है। वहाँ से मंदिर लगभग 1-2 किमी की दूरी पर है।

रेल मार्ग:
वडोदरा या भरूच रेलवे स्टेशन से टैक्सी या बस की सुविधा उपलब्ध है।

हवाई मार्ग:
वडोदरा एयरपोर्ट निकटतम हवाई अड्डा है।

आस-पास के दर्शनीय स्थल:

नीलकंठेश्वर महादेव मंदिर: पास ही स्थित एक और प्राचीन शिवधाम

वडोदरा का लक्ष्मी विलास पैलेस

भरूच का ऐतिहासिक ब्रिज और नदी तट

आवश्यक सुझाव:
यात्रा से पहले ज्वार-भाटा का समय ज़रूर जाँचें।

बच्चों और वृद्धों को समुद्र के पास अधिक न ले जाएँ।

उच्च ज्वार (High tide) के समय मंदिर परिसर में न जाएँ — यह सुरक्षा कारणों से निषेध है।

स्तंभेश्वर महादेव मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि यह प्रकृति और अध्यात्म का विलक्षण संगम है। जहाँ समुद्र स्वयं ईश्वर का पूजन करता है, वहाँ जाकर मानव मन भी स्वाभाविक रूप से झुक जाता है। यह मंदिर यह सिखाता है कि ईश्वर समय-समय पर अपने चमत्कारों के माध्यम से हमें अपनी उपस्थिति का बोध कराते रहते हैं।

यदि आप अपने जीवन में शांति, स्वास्थ्य और भक्ति की अनुभूति चाहते हैं, तो एक बार स्तंभेश्वर महादेव के इस अद्भुत धाम की यात्रा अवश्य करें।

हर हर महादेव

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