उमरिया में पत्रकारों का अपमान

कुर्सी नहीं मिली तो जमीन पर बैठे, BJP नेता की टिप्पणी ने भड़काया विवाद.

मध्यप्रदेश के उमरिया में एक सरकारी कार्यक्रम में पत्रकारों के साथ हुए अपमान ने सियासी तूफान खड़ा कर दिया। 7 मई 2025 को प्रभारी मंत्री नागर सिंह चौहान के कार्यक्रम में पत्रकारों को न तो कुर्सी दी गई और न ही उचित सम्मान। गुस्साए पत्रकारों ने जमीन पर बैठकर विरोध जताया, लेकिन मामला तब और बिगड़ गया, जब एक BJP नेता ने कथित तौर पर कहा, “पत्रकार इसके ही लायक हैं।” इस टिप्पणी ने न केवल पत्रकारों के गुस्से को हवा दी, बल्कि सोशल मीडिया और सियासी गलियारों में भी बवाल मचा दिया। आइए, इस पूरे घटनाक्रम को विस्तार से समझते हैं।
उमरिया में क्या हुआ?
उमरिया के एक सरकारी कार्यक्रम में प्रभारी मंत्री नागर सिंह चौहान मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद थे। इस दौरान स्थानीय पत्रकारों को कवरेज के लिए बुलाया गया था, लेकिन आयोजकों ने उनकी मौजूदगी को नजरअंदाज कर दिया। पत्रकारों के लिए न तो बैठने की व्यवस्था थी और न ही कोई सम्मानजनक जगह। जब पत्रकारों ने इसकी शिकायत की, तो उन्हें कथित तौर पर अनदेखा किया गया। गुस्साए पत्रकारों ने विरोध में जमीन पर बैठकर अपना रोष जताया। प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, पत्रकारों ने नारेबाजी भी की और आयोजकों से जवाब मांगा। यह घटना स्थानीय मीडिया में तेजी से वायरल हो गई।
BJP नेता की टिप्पणी: आग में घी
मामला तब और गंभीर हो गया, जब एक स्थानीय BJP नेता ने पत्रकारों के विरोध पर आपत्तिजनक टिप्पणी की। सूत्रों के मुताबिक, नेता ने कहा, “पत्रकारों को इतना भाव देने की जरूरत नहीं, ये लोग इसके ही लायक हैं।” इस बयान ने पत्रकारों के बीच भारी आक्रोश पैदा कर दिया। पत्रकार संगठनों ने इसे ‘लोकतंत्र के चौथे स्तंभ’ का अपमान बताते हुए कार्रवाई की मांग की। उमरिया प्रेस क्लब ने इस घटना की निंदा करते हुए कहा, “पत्रकार समाज का आईना हैं। उनका अपमान पूरे समाज का अपमान है।” इस टिप्पणी को लेकर विपक्षी दलों ने भी BJP पर निशाना साधा।
सोशल मीडिया पर बवाल
घटना की तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो गए। X पर #UmariaPatrakarAapman और #BJPAgainstMedia जैसे हैशटैग ट्रेंड करने लगे। एक यूजर ने लिखा, “BJP के नेता पत्रकारों को अपमानित करके क्या साबित करना चाहते हैं? यह लोकतंत्र के लिए शर्मनाक है।” वहीं, एक अन्य यूजर ने तंज कसते हुए लिखा, “पत्रकारों को जमीन पर बिठाना BJP का नया ‘सबका साथ, सबका विकास’ है क्या?” पत्रकारों के समर्थन में कई संगठनों और नेताओं ने आवाज उठाई। इस बीच, कुछ BJP समर्थकों ने दावा किया कि यह घटना ‘विपक्ष का प्रायोजित ड्रामा’ है।
विपक्ष का हमला: सियासी रंग
कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने इस घटना को BJP की ‘पत्रकार विरोधी’ मानसिकता का सबूत बताया। मध्यप्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता ने कहा, “BJP सरकार पत्रकारों को दबाना चाहती है, क्योंकि वे उनके काले कारनामों को उजागर करते हैं।” उन्होंने इस घटना की उच्चस्तरीय जांच की मांग की। आम आदमी पार्टी (AAP) ने भी BJP पर निशाना साधते हुए कहा, “पत्रकारों का अपमान करके BJP अपनी तानाशाही सोच दिखा रही है।” इस सियासी हमले ने घटना को और तूल दे दिया।
BJP की सफाई: माफी या लीपापोती?
विवाद बढ़ने के बाद BJP ने डैमेज कंट्रोल की कोशिश की। पार्टी के स्थानीय नेताओं ने दावा किया कि यह ‘आयोजकों की चूक’ थी और इसका कोई सियासी मकसद नहीं था। एक BJP प्रवक्ता ने कहा, “हम पत्रकारों का सम्मान करते हैं। यह एक छोटी-सी गलतफहमी थी, जिसे बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया जा रहा है।” हालांकि, उस नेता की ओर से कोई औपचारिक माफी नहीं आई, जिसने कथित तौर पर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी। इस सफाई को पत्रकार संगठनों ने ‘लीपापोती’ करार दिया और मांग की कि दोषी नेता के खिलाफ कार्रवाई हो।
पत्रकारों की मांग: सम्मान और जवाबदेही
उमरिया प्रेस क्लब और अन्य पत्रकार संगठनों ने इस घटना के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया है। उन्होंने मांग की है कि:
पत्रकारों के अपमान के लिए जिम्मेदार आयोजकों और नेता पर कार्रवाई हो।

भविष्य में सरकारी कार्यक्रमों में पत्रकारों के लिए उचित व्यवस्था सुनिश्चित की जाए।

BJP नेता की टिप्पणी की जांच हो और उन्हें सार्वजनिक माफी मांगने को कहा जाए।

पत्रकारों ने चेतावनी दी है कि अगर उनकी मांगें नहीं मानी गईं, तो वे उमरिया में व्यापक प्रदर्शन करेंगे। कुछ संगठनों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाकर इस मुद्दे को राष्ट्रीय स्तर पर उठाने की बात कही है।
पहले भी हुए हैं ऐसे विवाद
यह पहली बार नहीं है, जब पत्रकारों के साथ इस तरह का व्यवहार हुआ है। मध्यप्रदेश में पहले भी कई मौकों पर पत्रकारों ने सरकारी कार्यक्रमों में उपेक्षा की शिकायत की है। 2023 में भोपाल में एक कार्यक्रम में पत्रकारों को बैरिकेड के पीछे खड़ा किया गया था, जिसके बाद हंगामा हुआ था। उमरिया की यह घटना उस कड़ी में एक और अध्याय जोड़ती है। विश्लेषकों का मानना है कि पत्रकारों के प्रति यह रवैया सरकार और प्रशासन की प्राथमिकताओं पर सवाल उठाता है।

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