
30 जून 2025:भारत के मुख्य न्यायाधीश CJI गवई ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा SC/ ST के भीतर क्रीमी लेयर सिद्धांत को लागू करना की बात कही है ।उन्होंने कहा कि यह सबसे महत्वपूर्ण चरणों में से एक है । उन्होंने इसे सामाजिक न्याय को परिष्कृत करने की दिशा में एक निर्णायक कदम बताया । उन्होंने कहा कि उच्च पद पर बैठे एससी एसटी जाति के अधिकारियों के बच्चों को लाभों का पात्र मानना आरक्षण की मूल भावना को कमजोर करता है । वह इसी का लाभ लेकर इस पद पर पहुंचे हैं ।सीजी CJI गवई ने एक इंटरव्यू में यह बात कही है।
क्रीमी लेयर कोटा क्या होता है:
संविधान के अनुसार क्रीमी लेयर में वे लोग आते हैं जो सामाजिक और आर्थिक दृष्टि से दूसरों की तुलना में समाज में अधिक संपन्न होते हैं फिर चाहे वह अर्थ हो वह रहन-सहन हो या शिक्षा का क्षेत्र हो । CJI गवई का मानना है कि अगर क्रीमी लेयर को आरक्षण की सुविधा से वंचित किया जाता है तो और बाकी के लोगों को भी आगे बढ़ने का मौका मिलेगा।
यदि एक अधिकारी वर्ग की संतान जो पहले से ही सक्षम और सुविधा संपन्न है उसे यदि आरक्षण मिलता है तो वह असली जरूरतमंद लोगों को प्रभावित कर सकता है।
उन्होंने तर्क दिया कि उच्च पदों पर बैठे हुए एससी एसटी अधिकारियों के बच्चों को आरक्षण का लाभ क्यों मिलना चाहिए जबकि वह पहले से ही सामाजिक और आर्थिक रूप से सशक्त हो चुके हैं। यह बयान सुप्रीम कोर्ट की सात जजों की संविधान पीठ के विचार विमर्श के दौरान लिया गया जिसमें आरक्षण नीति की समीक्षा की जा रही है।
क्रीमी लेयर पर चर्चा क्यों है जरूरी:
क्रीमी लेयर पर बहस इसलिए तेज हो गई है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट के साथ जजों की बेंच में आरक्षण से संबंधित विभिन्न याचिकाओं पर सुनवाई हो रही है इस दौरान यह सवाल उठना लाजिमी है कि एससी एसटी समुदायों में क्रीमी लेयर क्यों अनिवार्य होना चाहिए जैसा कि अन्य पिछड़ा वर्ग ओबीसी के लिए पहले से ही लागू है सीजी ने इस मुद्दे पर अधिक विचार विमर्श की जरूरत पर बोल दिया उन्होंने कहा समाज में समानता लाने के लिए यह जरूरी है।
यह टिप्पणी उस जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के हाल ही के उस फैसले के बाद आई है जिसमें एससी-एसटी समुदाय के भीतर सब कैटिगरी को मंजूरी दी गई है ।ताकि आरक्षण का लाभ वंचितों तक सही रूप से पहुंच सके ।
न्यायिक अतिक्रमण ना बने न्यायिक आतंकवाद:
उन्होंने न्यायिक अतिक्रमण के खिलाफ चेतावनी देते हुए कहा कि इससे न्यायिक सक्रियता बनी रहेगी । इसे न्यायिक आतंकवाद नहीं बनना चाहिए । संसद कानून बनाती है कार्यपालिका उन्हें लागू करती है और न्यायपालिका संवैधानिक अनुपालन सुनिश्चित करती है अतिक्रमण इस संतुलन को बिगाड़ता है । संविधान केवल एक कानूनी दस्तावेज नहीं है यह सामाजिक परिवर्तन का एक साधन है।