कांग्रेस की मांग पर चुनाव आयोग का बड़ा फैसला

हरियाणा और महाराष्ट्र की वोटर लिस्ट साझा करने की मंजूरी

चुनाव आयोग ने कांग्रेस की एक बड़ी मांग को स्वीकार करते हुए हरियाणा और महाराष्ट्र के 2009 से 2024 तक के मतदाता सूची के डेटा को साझा करने का निर्णय लिया है। यह मामला तब चर्चा में आया जब कांग्रेस ने इस डेटा की मांग को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट का रुख किया था। कोर्ट के दबाव और औपचारिक आवेदन के बाद चुनाव आयोग ने यह महत्वपूर्ण फैसला लिया। इस कदम से बिहार सहित अन्य राज्यों में भी विपक्षी दलों की सक्रियता बढ़ने की संभावना है।

कांग्रेस ने पिछले साल हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में मतदाता सूची में कथित अनियमितताओं का मुद्दा उठाया था। पार्टी ने दावा किया था कि पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिए पुरानी मतदाता सूचियों का विश्लेषण जरूरी है। इस मांग को लेकर कांग्रेस सांसद रणदीप सुरजेवाला ने सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। शुरू में चुनाव आयोग ने इस डेटा को साझा करने में आनाकानी की और कोर्ट से तीन महीने का समय मांगा। लेकिन हाल ही में आयोग ने कोर्ट के निर्देशों के तहत डेटा साझा करने की प्रक्रिया को मंजूरी दे दी।

चुनाव आयोग ने स्पष्ट किया कि सभी राजनीतिक दलों को चुनाव के दौरान मतदाता सूची उपलब्ध कराई जाती है। हालांकि पुराने डेटा को साझा करने के लिए औपचारिक प्रक्रिया और कोर्ट के निर्देशों का पालन करना पड़ता है। इस फैसले के बाद कांग्रेस ने इसे अपनी जीत करार दिया है। पार्टी का कहना है कि यह कदम चुनावी प्रक्रिया में पारदर्शिता को बढ़ाएगा और मतदाता सूची में गड़बड़ियों की आशंका को कम करेगा।

सोशल मीडिया पर इस मुद्दे को लेकर तीखी प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं। कुछ यूजर्स ने चुनाव आयोग के इस कदम की सराहना की है तो कुछ ने इसे देरी से लिया गया फैसला बताया है। एक एक्स पोस्ट में कहा गया कि यह फैसला कोर्ट के दबाव में लिया गया है और आयोग को पहले ही इस दिशा में कदम उठाना चाहिए था। वहीं कुछ लोगों ने इस मुद्दे को राजनीतिक रंग देने की कोशिश की और इसे विपक्ष की रणनीति का हिस्सा बताया।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि इस फैसले से विपक्ष को चुनावी रणनीति तैयार करने में मदद मिल सकती है। खास तौर पर बिहार जैसे राज्यों में जहां जल्द ही विधानसभा चुनाव होने हैं। कांग्रेस इस डेटा का इस्तेमाल मतदाता व्यवहार का विश्लेषण करने और अपनी रणनीति को मजबूत करने में कर सकती है। यह कदम भविष्य में अन्य राज्यों में भी समान मांगों को हवा दे सकता है।

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