
ट्रेनी जजों पर शराब पीकर हंगामा करने और महिला साथी से अभद्र आचरण करने का लगा था आरोप।
हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने ट्रेनी जजों को राहत दे दी है। 2012 में एक रिजॉर्ट में शराब पीकर हंगामा करने वाले जजों को राहत मिली है। हाई कोर्ट ने इन जजों को बतौर प्रोबेशनरी अफसर बहाल करने का आदेश जारी कर दिया है।
उत्तर प्रदेश में हंगामा करने वाले ट्रेनी जजों को राहत दिए जाने की खबर सामने आई है। हाई कोर्ट ने उन्हें बतौर प्रोबेशनली अफसर बहाल करने का आदेश जारी किया है। हाई कोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने अयोध्या रोड स्थित चरण क्लब एंड रिसॉर्ट में वर्ष 2012 में शराब पीकर हंगामा करने वाले ट्रेनी जजों के केस में बड़ा फैसला सुनाया। कोर्ट ने उन्हें सर्विस से हटाए जाने वाले सभी आदेश खारिज कर दिए। हाई कोर्ट के जस्टिस जसप्रीत सिंह, जस्टिस मनीष माथुर और जस्टिस सुभाश विद्यार्थी की पूर्ण पीठ ने ट्रेनी जज सुधीर मिश्रा और सात अन्य ट्रेनी जजों की याचिका को मंजूर करते हुए यह आदेश पारित किया।
ट्रेनी जजों के हंगामे का मामला वर्ष 2012 का है। अयोध्या रोड स्थित चरण क्लब एंड रिसॉर्ट में हंगामा करने वाले सभी श्रेणी जज 2012 बैच के थे। इंडक्शन प्रोग्राम के लिए वे लखनऊ के इंस्टीट्यूट ऑफ ज्यूडिशल ट्रेंनिंग एंड रिसर्च आए थे। इसी दौरान 7 सितंबर 2012 को 16 ट्रेनी जज चरण क्लब एंड रिजॉर्ट पहुंचे थे। वे पार्टी करने वहां गए थे। रिसॉर्ट के गार्ड ने बताया कि घटना के दिन अधिकतर जज अपनी गाड़ियों से आए थे।
आरोप था कि सभी ट्रेनी जजों ने यहां खूब शराब पी ली। इस दौरान उन्होंने खूब हंगामा भी किया। मामला संज्ञान में आया तो शासन के स्तर से इन ट्रेनी जजों के खिलाफ एक्शन हो गया। उन्हें उनके पद से हटा दिया गया।
ट्रेनी जजों की ओर से हंगामा किए जाने के बाद हुए सरकार के एक्शन को कोर्ट में चुनौती दी गई। याचियों का तर्क था कि उनके खिलाफ जो आरोप लगाए गए थे, वह उन्हें कलंकित करने वाले थे। उन्हें सुनवाई के दौरान अपना पक्ष रखे जाने का मौका मिलना चाहिए था, लेकिन उन्हें पद से हटा दिया गया। याचियों का तर्क था कि उन्हें हटाने संबंधी आदेश कानून के खिलाफ है। अब इस मामले में हाई कोर्ट की पूर्ण पीठ का फैसला सामने आया है।
हाई कोर्ट लखनऊ खंडपीठ ने ट्रेनी जजों की याचिका पर सुनवाई के दौरान बड़ा आदेश पारित किया। हाई कोर्ट की पूर्ण पीठ ने कहा कि ट्रेनी जजों को जिन आरोपों के तहत हटाया गया था, वह उन्हें कलंकित करने वाले थे। इसके बावजूद उन्हें हटाए जाने से पहले अपना पक्ष रखने का मौका नहीं दिया गया। यह सुनवाई के तय सिद्धांतों के खिलाफ है। कोर्ट ने इसके बाद सभी ट्रेनें जजों के पक्ष में फैसला सुनाया।