
काठमांडू। नेपाल में राजशाही की वापसी की मांग को लेकर शुक्रवार को भड़की हिंसा ने पूरी दुनिया का ध्यान अपनी तरफ ही खींचा। अब नेपाल के पूर्व पीएम पुष्प कमल दहल प्रचंड ने हिंसा के पीछे राजा ज्ञानेंद्र शाह का हाथ होने का भी आरोप लगाया है।
नेपाल में शुक्रवार को राजशाही बहाली की मांग को लेकर हुए विरोध प्रदर्शन हिंसक भी हो गए। इस दौरान जमकर बवाल भी हुआ। अब नेपाल के पूर्व पीएम पुष्प कमल दहल ने राजा ज्ञानेंद्र शाह पर हिंसा भड़काने का भी आरोप लगाया है। पूर्व पीएम ने राजा ज्ञानेंद्र शाह के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की भी मांग की है। पुष्प कमल दहल प्रचंड ने शनिवार की सुबह हिंसा प्रभावित इलाकों का दौरा भी किया। इस दौरान वे सोशलिस्ट फ्रंट के कार्यालय भी पहुंचे, जिसे हिंसा के दौरान नुकसान भी पहुंचाया गया।
पूर्व पीएम ने नेपाल के राजा पर भी लगाए गंभीर आरोप
पूर्व पीएम पुष्प कमल दहल प्रचंड ने कहा है कि ‘अब ये पूरी तरह से भी साफ हो गया है’ कि इस सब के पीछे ज्ञानेंद्र शाह हैं। ज्ञानेंद्र शाह की नीयत सही नहीं है। ये पहले भी देखा गया और अब भी देखा जा रहा है, लेकिन अब समय आ गया है कि सरकार कड़ी कार्रवाई करे। घटना की पूरी जांच हो और दोषियों को न्याय के कटघरे में भी लाया जाए। ज्ञानेंद्र शाह को भी अब पूरी आजादी नहीं दी जा सकती। यह पूरी तरह से अस्वीकार्य है और नेपाल सरकार को इस मुद्दे पर गंभीर होने की भी जरूरत है।
हिंसा में दो लोगों की भी हुई मौत
शुक्रवार को नेपाल में हुई हिंसा में दो लोगों की भी मौत हुई है, जिनमें से एक प्रदर्शनकारी और एक पत्रकार भी शामिल है। हिंसा इस कदर नियंत्रण से बाहर हो गई थी कि हिंसा प्रभावित इलाकों में कर्फ्यू भी लगाना पड़ा और सेना की तैनाती करनी पड़ी। हिंसा के मामले में पुलिस ने शुक्रवार को 17 लोगों को भी गिरफ्तार किया, जिनमें राजशाही समर्थक राजनीतिक पार्टी राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी के उपाध्यक्ष रबिंद्र मिश्रा, महासचिव धवल शमशेर राना, राजशाही समर्थक कार्यकर्ता स्वागत नेपाल और संतोष तमांग आदि भी शामिल हैं। इन लोगों पर हिंसा भड़काने का भी आरोप है। कई नेताओं को नजरबंद भी किया गया है। अब तक हिंसा के मामले में कुल 51 लोगों की गिरफ्तारी ही हुई है।
राजशाही की वापसी की मांग को भी लेकर किए जा रहे आंदोलन का नेतृत्व नवराज सुवेदी कर रहे हैं। वे राज संस्था पुनर्स्थापना आंदोलन से भी जुड़े हैं। राजशाही समर्थक राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी भी इस आंदोलन का भी समर्थन कर रही है। आंदोलनकारियों का भी दावा है कि संवैधानिक राजशाही हिंदू राष्ट्र की बहाली ही देश की समस्याओं का भी समाधान है। नेपाल में साल 2006 से पहले राजशाही शासन भी था। विरोध के बाद राजा ज्ञानेंद्र को सत्ता भी छोड़नी पड़ी थी। इसके बाद सभी अधिकार संसद को भी सौंप दिए गए और नेपाल में साल 2008 में 240 साल पुराना राजशाही शासन भी खत्म हो गया।