विरह वेदना की कवियित्री-महादेवी वर्मा

महादेवी वर्मा हिंदी साहित्य की एक प्रतिष्ठित आधुनिक और सबसे सशक्त कवित्रियों में से हैं। उनका जन्म 26 मार्च 1960 को उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले में हुआ था ।
80 वर्ष का उनका जीवन काल रहा।
उनका निधन 11 सितंबर 1987 में हुआ ।
उनके परिवार में सात पीढ़ियों बाद पहली बेटी के जन्म पर उनके दादा बाबू बांके बिहारी जी ने उन्हें घर की देवी मानते हुए महादेवी नाम दिया था।
इनके पिता श्री गोविंद प्रसाद वर्मा भागलपुर के एक कॉलेज में प्राध्यापक थे। और माता हेमरानी एक धर्म परायण धार्मिक महिला थी। उनकी प्रारंभिक शिक्षा इंदौर के एक मिशनरी स्कूल में हुई ।इसके बाद इन्होंने अपना ग्रेजुएशन इलाहाबाद के गर्ल्स कॉलेज से छात्रावास में रहकर किया। यहां से वह छिपकर कविताएं लिखने लगी थी। उनके साथ ही कमरे में सुभद्रा कुमारी चौहान थी ।
सुभद्रा कुमारी खड़ी बोली में लिखती थी। उनके साथ रहकर महादेवी भी खड़ी बोली में लिखने लगी । वे पढ़ाई में बहुत ही निपुण थी 1921 में आठवीं में संपूर्ण प्रांत में प्रथम स्थान प्राप्त किया था ।यही से उन्होंने अपना काव्य जीवन भी प्रारंभ किया। 7 वर्ष की उम्र से उन्होंने कविता लिखना शुरू कर दिया था ।
1925 में जब उन्होंने मैट्रिक पास की तब वह काफी सफल कवयित्री के रूप में प्रसिद्ध हो चुकी थी।
1916 में 9 वर्ष की उम्र में इनका विवाह बरेली के पास नवाबगंज के निवासी श्री स्वरूप नारायण वर्मा से हुआ।
महादेवी वर्मा सुभद्रा कुमारी चौहान के साथ रहकर साप्ताहिक पत्रिकाओं में प्रकाशन हेतु कविताएं भेजती। कविता संगोष्ठी में भी भाग लेती थी, इससे बड़े-बड़े हिंदी कवियों के संपर्क में भी आई।
इन्होंने शिक्षिका के रूप में अपना कैरियर शुरू किया और प्रयाग महिला विद्यापीठ की प्रिंसिपल बनी ।विवाहित होने के बावजूद एक तपस्वी की तरह जीवन जिया ।
80 वर्ष के जीवन काल में उन्होंने महान कवयित्री ,प्राचार्य, उपकुलाधिपति, स्वतंत्रता सेनानी जैसे अनेक प्रकार की महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ।
उन्हें आधुनिक मीरा भी कहा जाता है ।महादेवी वर्मा रहस्यवाद और छायावाद की कवयित्री थी ।वेदना और पीड़ा उनकी कविताओं के प्राण रहे हैं।
1937 में उन्होंने नैनीताल से 25 किलोमीटर दूर उत्तराखंड के रामगढ़ में एक घर बनवाया ।उन्होंने इसका नाम मीरा रखा ।जब तक वह यहां रही उन्होंने गांव वालों के लोगों और उनकी शिक्षा के लिए काम किया ।उन्होंने महिलाओं की शिक्षा और उनके आत्मनिर्भर बनने पर जोर दिया। वे सामाजिक रूढ़ियों के खिलाफ रही। विवाह के बाद महिलाओं के चार दिवारी के अंदर गुलामी की तरह जीवन के खिलाफ रही ।उन्हें महिला मुक्तिवादी के रूप में भी जाना जाता है। महिलाओं की शिक्षा, विकास ,सामाजिक सेवा के कारण उन्हें समाज सुधारक भी कहा गया।
उन्होंने बचपन की जीवनी
‘मेरे बचपन के दिन’ में उन्होंने अपने आप को बहुत ही भाग्यशाली बताया कि मेरा जन्म बहुत ही उदारवादी परिवार में हुआ पालतू पशुओं की कहानी भी उनकी बहुत प्रसिद्ध रही।

उनकी उपलब्धियां —

1979 में साहित्य अकादमी पुरस्कार ।
1982 में ज्ञानपीठ पुरस्कार। 1956 में पद्मभूषण ।
1988 में पद्म विभूषण सम्मान से सम्मानित किया गया, जो भारत का तीसरा और नागरिकता का दूसरा सबसे बड़ा सम्मान है ।वह एक चित्रकार भी थी।

कविता संग्रह —

निहार 1930
रश्मि 1932
नीरज 1934
संध्या गीत 1936
दीपशिखा 1942
सप्तपर्णा 1959
प्रथम आयाम 1974
अग्नि रेखा 1990
इसके अलावा उनके अनेक काव्य संकलन भी प्रकाशित हैं। जैसे —-
आत्मिका ,परिक्रमा, संधिनी
(1965 ), यामा (1936 )गीत पर्व , दीपगीत ,स्मारिका ,निलांबरा और आधुनिक कवि महादेवी आदि।

महादेवी के गद्य साहित्य—

अतीत के चलचित्र (1941)
स्मृति की रेखाएं (1943)
पथ के साथी (1956 )
मेरा परिवार (1972)
संस्मरण (1983 )
चुने हुए भाषणों का संकलन– संभाषण( 1974 )
निबंध श्रृंखला की कड़ियां (1942 )
विवेचनात्मक गद्य( 1942)
साहित्यकार की आस्था और अन्य निबंध (1962)
संकल्पिता(1969)
ललित निबंध– क्षणदा(1956 )
कहानियां– गिल्लू
निबंधों का संग्रह हिमालय (1963)

उन्हें प्रशासनिक अर्ध- प्रशासनिक और व्यक्तिगत कई संस्थाओं से बहुत से पुरस्कार और सम्मान मिले हैं। वे भारत की सबसे यशस्वी महिलाओं में भी शामिल हैं। भारत सरकार ने उनके सम्मान में ₹2 का एक टिकट भी जारी किया हुआ है।

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