
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम याचिका पर संज्ञान लेते हुए टिप्पणी की है। मामला सिंगल मदर्स के बच्चों के ओबीसी सर्टिफिकेट से जुड़ा है। कोर्ट ने कहा है कि ऐसी मां के बच्चों के ओबीसी सर्टिफिकेट को मान्यता मिलना एक जरूरी मुद्दा है। कोर्ट में इस पर विस्तार से सुनवाई करेगा।
दरअसल, जो याचिका कोर्ट में दाखिल की गई है, उसके तहत पिता के ओबीसी प्रमाण पत्र के आधार पर ही बच्चे को सर्टिफिकेट देने की व्यवस्था का विरोध किया गया है। इस मामले की सुनवाई तारीख 22 जुलाई तय की गई है। खुद इस मामले में सुनवाई सीजेआई बीआर गवई कर सकते हैं।
याचिका दिल्ली की रहने वाली संतोष कुमारी ने दाखिल की है। इसके तहत पूछा गया है कि अगर मां ओबीसी है। अकेले बच्चे का पालन कर रही है, तो बच्चे को भी ओबीसी सर्टिफिकेट मिलना चाहिए।
इसके जवाब में सुप्रीम कोर्ट ने कहा- पूरे मामले में विस्तार से सुनवाई की जरूरत है। इस मामले में सर्वोच्च न्यायलय ने दिल्ली और केंद्र सरकार से जवाब मांगा था। लेकिन अब जब मामला बड़ा होता जा रहा है, तो अन्य राज्यों की भूमिका भी इसमें अहम हो गई है। जस्टिस केवी विश्वनाथन और एन कोटिश्वर सिंह की बेंच ने कहा- इस पूरे मामले में विस्तृत सुनवाई की जरूरत है।
राज्य सरकारों को जवाब देने कहा: कोर्ट ने इस पूरे मामले में कहा है कि अगर किसी महिला का तलाक हो गया, तो उसे अपने बच्चे का जाति प्रमाण पत्र बनवाने के लिए पूर्व पति से सहायता मांगने की जरूरत नहीं है। राज्य सरकारे इस सवाल का भी जवाब तैयार रखें। अगर विवाहित जोड़े में से पत्नी ओबीसी नहीं है, तो क्या बच्चे को ओबीसी सर्टिफिकेट नहीं मिलता?
इस दौरान सुनवाई कर रहे जजों ने कोर्ट के एक फैसले का हवाला दिया है। इसमें माता के एससी/एसटी सर्टिफिकेट के आधार पर बच्चे को भी जाति प्रमाण पत्र देने की बात कही गई है।
याचिकाकर्ता ने कहा- सिर्फ पैतृक पक्ष के आधार पर ओबीसी प्रमाण पत्र देना संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है। एससी-एसटी के लिए इस तरह की व्यवस्था लागू नहीं है। ऐसे में ओबीसी वर्ग की एकल माताओं के बच्चों के साथ भेदभाव होता है। अगर किसी ओबीसी महिला ने बच्चे को गोद लिया है, तो वह पिता का जाति प्रमाण पत्र कैसे दे सकती है? देखना ये है कि 22 जुलाई को होने वाली सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट क्या रुख अपनाता है।